Book Title: Sammetshikhar Vivad Kyo aur Kaisa
Author(s): Mohanraj Bhandari
Publisher: Vasupujya Swami Jain Shwetambar Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ " सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?" सम्पादक-लेखक की कलम से - 3 एक विशेष नम्र निवेदन सोये हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है लेकिन जो जागकर भी सोने का बहाना करे, उसे भला कौन जगाये और कैसे जगाये ? जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के युग तक, जैन धर्म के समूचे अनुयायी जिस तरह से परस्पर सहयोगी और संगठित होकर चले उसी के परिणाम स्वरूप जैन धर्म नयी ऊंचाइयों को छूने की ओर बढ़ता ही गया और विश्व - मानव उससे उत्तरोत्तर प्रभावित होने लगा तथा जैन धर्म विश्व-धर्म बनने की क्षमता का आभास कराने लगा लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भगवान महावीर के युग के पश्चात् जैन आचार्यों एवं साधु-सन्तों द्वारा व्यक्तिगत यशप्राप्ति की भावना के वशीभूत होकर जैन धर्म के आधारभूत सिद्धान्तों की पूर्णतया अनदेखी करने का दुःखद क्रम चला दिया गया । यह क्रम आनन-फानन में इतनी तेजी से चल पड़ा कि जैन धर्म के अनुयायी स्व-विवेक को छोड़ कर सम्प्रदायों और सम्प्रदायों के अन्तर्गत छोटे-छोटे गुटों में इस तरह बंटता जा रहा है कि आज वह कहीं रूकने का नाम नहीं ले रहा है । इस क्रम ने जैन धर्म को जितनी क्षति पहुँचाई है और पहुँचाता जा रहा है उसकी कल्पना भी आसानी से नहीं की जा सकती है। सच्चाई को समझने के लिए इतिहास के उस दौर का हम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 140