Book Title: Sambodhi 2003 Vol 26
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 99
________________ Vol. xxVI, 2003 कर्म का भौतिक स्वरूप 93 १९३२ में जर्मन वैज्ञानिक हाइजन बर्ग ने कहा कि सूक्ष्म पदार्थ पर स्थूल पदार्थ के नियम लागू नहीं होते । इसी कारण सूक्ष्म को समझने में अनिश्चितता बनी रहती है। जैन दार्शनिकों ने इस भेद को बहत पहले ही समझ लिया था और उसका कारण उन्होंने गुरु-लघु पर्याय को दिया था । वर्तमान युग के वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग कहते है कि अरस्त से चली आ रही समृद्ध दर्शन परम्परा आज विज्ञान परम्परा के समक्ष लड़खड़ा रही है। इसमें कुछ औचित्य भी है लेकिन जैन दर्शन ने कर्ममीमांसा के क्षेत्र में सूक्ष्म पदार्थ के व्यवहार की वैज्ञानिक व्याख्या कर, भौतिक जगत को आश्चर्यजनक दार्शनिक देन दी है । ३. जैन दर्शन के अनुसार आत्मा या जीव जब कोई प्रवृत्ति करता है तो वह सूक्ष्म कर्म पदार्थ के आकर्षित करता है तथा कर्म उदय अवस्था में आत्मा से विकर्षित होते हुए मुक्त हो जाते है । आकर्षण और विकर्षण का यह गुण, जो कर्म-वर्ग में होता है वह संभवतः सूक्ष्म पुद्ग्ल के स्निग्ध तथा रूक्ष स्पर्श की ही देन है क्योंकि शीत और उष्ण स्पर्श से यह गुण उत्पन्न होना संभव नहीं । कर्मो के आकर्षण और विकर्षण के गुण का वैज्ञानिक विवेचन करें तो यह संभव है कि यह गुण गुरुत्वाकर्षण के गुण के समान हो । यह आश्चर्य की बात है कि न्यूटन के समय में गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त कणों विभिन्न पदार्थो में परस्पर केवल आकर्षण की ही बात कहता था लेकिन आज यह सिद्धान्त संशोधित हो चुका है और यह माना जाता है.कि गुरुत्वाकर्षण का बल, द्रव्यो में तथा अन्य पदार्थों में आकर्षण और विकर्षण दोनों का कारण हैं । जैनो ने कर्म व्यवहार में, आकर्षण-विकर्षण दोनों गुणो को बता कर, सूक्ष्म कणों के व्यवहार को जानने में स्पष्टता प्रकट की है । जैन दार्शनिक जब यह कहते हैं कि कर्म बन्ध का अभिप्राय आत्मा से कर्म का आकर्षण होना चाहिए तब यह क्यों आवश्यक है कि कर्म बंध प्रक्रिया में कर्म, आत्मा के प्रदेशों से आकर चिपक जाय ? वे कहीं, दूर रहकर भी अगरं आकर्षण बना लेते है तथा आत्मा के नियंत्रण में आ जाते है तो उसे कर्म-बंध मानने में औचित्य हैं । भौतिक विज्ञान में प्रायिकता का सिद्धान्त सूक्ष्म जगत में अधिक प्रभावी है । यह माना जाता है कि परमाणु के न्युक्लियस से आकर्षित उसके इलेकट्रोन आर्बिटस में रहे या यह भी संभव है कि कोई इलेक्ट्रोन अत्यंत दूर रहता हुआ भी न्युक्लियस से आकर्षित रह सकता है । यही संभावना क र्म-वर्गणाओं पर लागू हो सकती है क्योकि यह सूक्ष्म जगत का नियम है। जैन आगम में वर्णन है कि तहरवें गुणस्थान में प्रथम समय कर्म बंध का है और दूसरा समय कर्मक्षय का है अर्थात् अत्यंत कम स्थिति और अनुभाग (रसना) के ये अधाति कर्म के पुद्गल आकर्षित होते हैं और विकर्षित हो जाते है। यह तभी संभव है जब कर्म-तन्त्रों को गति न करनी पड़े और जहां है वही आकर्षण - विकर्षण हो जाय । हमे कर्म की परिभाषा को महत्त्व देना चाहिए कि कर्म आकृष्ट होते है - यह मल बात है। आत्मा से एकाकार होने का अभिप्राय यह नहीं मानना चाहिए कि वे चिपकते ही है । लम्बी स्थिति और गहरे अनुभागवाले घाति कर्म आत्मा से आकर निकटता से संसर्ग करे, यह तो उचित लगता है। कर्म बन्ध को इस दृष्टि से सोचना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रारम्भ है, न कि अन्त । ___(४) सूक्ष्म पुद्गल इस लोक में खचाखच भरी है । विज्ञान के अनुसार आकाश का कोई भाग खाली नहीं है । गुरुत्वाकर्षण बल तथा फोटोन्स आकाश के दूर तक छोर पर भी उपलब्ध है । सूक्ष्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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