Book Title: Sambodhi 2003 Vol 26
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 132
________________ 126 યોગિની એચ. વ્યાસ SAMBODHI (२०) नूनं ह्यदृष्टनिष्ठोऽयमदृष्टपरमो जनः । अदृष्टमात्मनस्तत्वं यो वेद न स मुह्यति ॥ - भागवतपुराण-५/३० (२१) राजन् मनीषितं सम्यक् तव स्वावद्यमार्जनम् । सिद्धयसिद्धयोः समं कुर्याद् दैवं हि फलसाधनम् ॥ मनोरथान् करोत्युच्चैर्जनो दैवहतानपि । युज्यते हर्षशोकाभ्यां तथाप्याशां करोमि ते ॥ - भागवतपुराण - ३६/३८-३९ (२२) A अहो विधातस्तव न कवचिद दया संयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिनः । तांश्चाकृतार्थान् वियुनक्षयपार्थकंविक्रीडितं तेऽर्भकचेष्ठितं यथा ॥ - भागवतपुराण - १०/३९/१९ B अनाधीरेष समास्थितो रथं तमन्वमी च त्वरयन्ति दुर्मदाः । गोपा अनोभिः स्थविरैरूपेक्षितं दैवं च नोऽद्य प्रतिकूलमीहते ॥ - भागवतपुराण – १०/३९/२७ (२३) यथा दारुमयी योषिन्नृत्यते कुहकेच्छया। एवमीश्वरतन्त्रोऽयमीहते सुखदुःखयोः ।। - भागवतपुराण- १०/५४/१२ સંદર્ભ ગ્રન્થસૂચિ (१) श्रीमद्भागवत महापुराण : गीताप्रेस, गोरखपुर (२) ऐतरेय ब्राह्मण : संपा. आगशे के. एस., पूना - १८९६ (3) मत्स्य पुराण : प्रकाशक - नन्दलाल भोर, कलकत्ता - १९५४ (४) ऋग्वेदसंहिता : (सायणभाष्य) वैदिक संशोधन मंडल, पूना, १९४१ (५) अथर्ववेद : शौनकीय (सायणभाष्य), संपा. विश्वबन्धु, भाग - १, प्रकाशक - विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, १९६० ६) यजुर्वेद : (उव्वटभाष्य) संपा. पंडित जगदीशलाल शास्त्री, मोतीलाल बनारसीदास, १९७१ (७) विष्णुपुराण : संपा. उत्प्रेति थानेशचन्द्र, परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, प्रथम संस्करणम्, १९८६-८७ (८) महाभारत में शांतिपर्व का आलोचनात्मक अध्ययन - विद्यालंकार सुमेधा, ईस्टर्न बुक लिंस, दिल्ली, १९८४ (c) Pargiter F. E. - Ancient Indian Historical Tradition, Motilal Banarsidass, 1962 (१०) WInternits M. - A History of Indian Literature, Motilal Banarasidass, Reprinted, 1990. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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