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कुवलयमाला-महाकथा
ई. शूद्रकुलः
(४) शूद्र जाति का लोभी और चोर सार्थवाहः अश्व-व्यापार, समुद्र-यात्रा, व्यापार में साहस, समुद्री तूफान से यान का टूट जाना, मित्र को समुद्र में फेंकना, कीमियागरों द्वारा मनुष्य-माँस के प्रयोग से अमूल्य धातु बनाना । उ. जंगाली जातिः
(७) पर्वतीय राजा : अन्य राजा का आक्रमण, पर्वतीय राजा की हत्या, रानी द्वारा भाग निकलना और राजकुमार के साथ दीक्षा ।
(१६) भिल्ल-सेनापतिः इसका उल्लेख क्षत्रियकुल के नीचे हो चुका है। जंगल में सार्थवाह इत्यादि को अवसर पा कर लूटना । ऊ. विविधः
(८) रण्यमूषकः धर्म-बोध, जाति-स्मरण । (१२) यक्षः भगवद्भक्ति, विद्याबल और औषधिवलय ।
(१३) राज-पोपटः तोते को राजकुमारी द्वारा सभी कलाओं में प्रशिक्षण देना, पुनः उसके द्वारा जंगल में रहने वाली एक राजकुमारी को प्रशिक्षण देना, एक जगह से दूसरी जगह संदेश पहुँचाना ।
इस विश्लेषण से कथाओं के अनेक प्रकार और समकालीन सामाजिक जीवन के विभिन्न पहेलुओं की जानकारी प्राप्त करने में हमें पर्याप्त सहायता मिलती है ।