Book Title: Sambodhi 1973 Vol 02
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 375
________________ २६ नगीन जी. शाह (३) उम कर्म (motion ) के द्वारा परमाणु संयुक्त होकर हयणुकादिक्रम से निर्माणकाय उत्पन्न करते हैं । (४) परमाणु निर्माणकाय के उपादानकारण हैं । (५) योगी निर्माणकाय का कर्ता (= निमित्तकारण) है। (६) योगी अपने पूर्वकर्मो (संचित कर्मों) को अन्तिम जन्म में भोग लेने के लिए निर्माणका बनाता है । (५) अपने पूर्वकृत एक विशेष कर्म के फलस्वरूप योगी का निर्माणकाय का संकल्प व्याघान को प्राप्त नहीं होता । जगन्निर्माणप्रक्रिया के अंग : (१) ईश्वर संकल्पनात्र से ही जगत का सर्जन करता है, उसमें शरीरचेष्टा की अपेक्षा नहीं रहती - शरीर की अपेक्षा नहीं रहती । ईश्वर अशरीरी है । (२) ईश्वर के संकल्पमात्र से परमाणुओं में आरंभक कर्म ( motion ) उत्पन्न होता है । (३) उस कर्म (motion ) के द्वारा परमाणु संयुक्त होकर द्वयणुकादि क्रम से जगत के सभी कार्यो को उत्पन्न करते हैं । (४) परमाणु जगत के उपादानकारण हैं । (५.) ईश्वर जगत का कर्ता है । (६) जीव अपने पूर्वकर्मों का फल भोग सके इसके लिए ईश्वर जगत उत्पन्न करता है । निर्माणकाय की प्रक्रिया के सातवे अंग का जगन्निर्माण की प्रक्रिया के अंग के साथ मेल नहीं बैठने से प्रायः कर के न्याय वैशेषिक चिन्तकों ने उसे छोड दिया है। ईश्वर में अपने पूर्वकृत कर्मजन्य धर्म नहीं होता इसलिए ईश्वर में धर्मका अभाव माना गया है। इस प्रकार निर्माणका निर्माण की प्रक्रिया मामूली परिवर्तन के साथ जगनिर्माण की प्रक्रिया बन जाती है । इससे स्पष्ट होता है कि जगत्कर्ता ईश्वर की मान्यता का आधार (model) निर्माणकायकर्ता योगी है । (ब) ईश्वर में बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न की मान्यता के विषय में न्यायवैशेषिक विचारों के मतभेद का तार्किक मूल प्रयत्न का कारण इच्छा है, इच्छा का कारण बुद्धि हैं । ज्ञान के बाद इच्छा होती है । इच्छा के बाद प्रयत्न होता है । यदि प्रयत्न नित्य है तो बुद्धि और इच्छा को मानने का कोई प्रयोजन नहीं रहता । जो लोग ईश्वर में प्रयत्न नहीं मानते किन्तु बुद्धि और इच्छा को मानते हैं और इच्छा को नित्य मानते हैं बुद्धि को मानने की आवश्यकता नहीं रहती । जो लोग इच्छा और प्रयत्न को न

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