Book Title: Sambodhi 1973 Vol 02
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 413
________________ ४ अशातकर्तृक सुमनपाननणा करि कुंडली, कसमसंती अंगि पटोलडो । आर हगव्या हंस गतिई करो, रुणझणाट करई मणिनेउरो ।। १३ ।। सज्जने नयनमार्गमागते, जायते मनसि या मुदभुता । तत्र नैव वचनं प्रवर्तते, चेतसोऽनुभव एव केवलः ॥१४॥ उड्डीय वाछितं यान्ति, वरमेते विहङ्गमाः । न पुनः पक्षहीनत्वात् , पशुप्रायं कुमानुपम् ॥१५॥ हरिण मोर चकोर हुलाहिया, ससक सूकर जंबूक साहिया । टलवलई कुरलई विरसस्वरिइं, पसूअवाड तिहां मिरख्या वलइ ॥१६॥ काचई घडइ न स्थिर नीर थाइ, क्षणि क्षणि आउ गलत जाइ । ए. जीव रामारसि तोइ राचइ, आरंभि माचइ नवि धर्म साचइ ॥१४॥ गिउ वली वर राजल सांभली, मनि रली सघली नसतां टली । भई पडी विलवह जिम माछिलो, टलवलइ जल थोडइ आकुली॥१८॥ उग्रसेन कुलवाली जोयती डुस जाली, पहिरणि जसु फाली सयरनी कांति काली । नेमिकुमर निहालीता रथ गिउ.. वालीइ सिद्ध पुण विचाली मयण, मूंकइ सराली ॥१९॥ असुख चडिउं ढोइ आपवू शोक ढोड, चढण हणषणूं रोइ काजल आंखि लूहइ । सहीयर मन मोहह, नेमिनु मार्ग जोड़, सही मयण विगोइ चीत माहरूं विलोइ ॥२०॥ किस्यूं सरोवर पालो . . ध तुमई जि टाली. ___ कइ लही विचाली बाल लीयां अदाली। मुनि रहई दोय गाली आल दइ सुद्ध बाली, किस्यूं दव परजाली जीवडा कोडि बाली ॥२१॥ निज करम वखोडइ कांकणां वेगि फोडई. तिलक कुंडल विछोडइ हार हेलो जि त्रोडइ । मणि नेउर मोडइ राइमइ पाय रेडइ, पथिथी कवि जेडइ वेस बाली वजेडइ ॥२२॥

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