Book Title: Sambodhi 1973 Vol 02
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 359
________________ १० नगीन जी. शाह यह ईश्वर का अनुग्नह है15। ईश्वर का ऐश्वर्य नित्य है। वह धर्म का (=पूर्वकृत कर्म का) फन्ट नहीं। ईश्वर में धर्म है ही नहीं 19 | ईश्वर में संख्या, परिमाण, पृथकन्च, मंधोग, विभाग और बुद्धि चे छ ही गुण है:1" । एक स्थल पर उद्योतकर कहते है कि उसम' अलिष्ट और अव्याहत इच्छा भी है 15। ईश्वर को शरीर नहीं। ईश्वर को मानने की क्या आवश्यकता है ? जीवों के धर्माधर्म ही परमाणुआं को कार्यात्यति में प्रवर्तित करते हैं ऐसा क्यों नहीं मानने ? इसके उत्तर में उद्योतकर कहते है कि धर्माधर्म अचेतन हैं और अचेतन स्वतंत्र रूप से किसी को कार्यात्पांच में प्रवर्तिन नहीं कर सकता। मान लो कि धर्माधर्म परमाणुओं को कार्यो-पति में प्रवर्तित करता है--अर्थात परमाणुओं में कार्यारम्भक गति उत्पन्न करता है। धर्माधर्म तो करणकारक है। केवल करणकारक से क्रिया उत्पन्न नहीं होती। अनः केवल धर्माधर्म से परमाणुओं में आरंभक क्रिया उत्पन्न नहीं हो सकती। यदि कहो कि परमाणुओं की सहायता से धर्माधर्म परमाणुओं में आरंभक क्रिया उत्पन्न करता है तो यह भी ठीक नहीं। परमाण तो कर्मकारक है। कर्मकारक और करणकारक ये दोनों मिलकर भी आरंभक क्रिया उत्पन्न नहीं कर सकते । मिट्टी (कर्म) और दंड-चक (करण) इन दानों से ही घटारंभक क्रिया उत्पन्न होती हुई किसीन नहीं देखी। इस प्रकार आरंभक क्रिया की उत्पत्ति के लिए कर्मकारक और करणकारक के साथ कर्तृकारक (=कर्ता) का होना आवश्यक है। यदि कहो कि कर्ता जीव है और वह अपने कर्मी (धर्याधर्म) के द्वारा परमाणुओं में आरंभक गति पैदा करता है तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि जीव अज्ञानी होने से परमाणुओं में से जो जो कार्य जिस जिस रीतिसे होनेवाले हैं उसका उसे ज्ञान नहीं, और उसी वजह से उन उन कार्यो को उत्पन्न करने के लिए आरंभक गति परणुमाओं में उत्पन्न करने के लिए वह शक्तिमान नहीं। यदि कहो कि परमाणुओं में आरंभक गति की उत्पत्ति का कोई कारण ही नहीं तो यह भी अनुचित है, क्यों फि हमने कभी कारण के बिना किसी की भी उत्पत्ति देखी नहीं। अतः बुद्धिमान अर्थात सर्वज्ञ ईश्वर से ही परमाणु तथा कर्म (धर्माधर्म) कार्योन्मुख होते हैं ऐसा मानना चाहिए। अर्थात्, ईश्वर ही परमाणुओं में आद्यकर्म उत्पन्न करता है और ईश्वर ही अदृष्ट को विपाकोन्मुख करता है।19 कोई शंका करता है कि ईश्वर जगत का कर्ता नहीं क्योंकि वह किसी भी प्रकार से जगत का कर्ता नहीं बन सकता है। ईश्वर को जगत का कर्ता मानने में दो विकल्प संभवित-है-वह या तो दूसरे की सहायता से जगत को उत्पन्न करता है या दूसरे की सहायता के बिना ही जगत को उत्पन्न करता है। यदि वह अन्य की सहायता से जगत का कर्ता बनता हो तो जिसकी सहायता से वह जगत का कर्ता हुआ उसका वह कर्ता नहीं माना जायगा। यदि कहो कि जिसकी सहायता से वह जगत का कर्ता बनता है उसे वह अन्य किसी की सहायता से उत्पन्न करता है तो अब उसने जिसकी सहायता ली उसका नो वह अकर्ता ही रहेगा। यदि कहो कि

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