Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 25
________________ 8. जह ण वि सक्कमणज्जो Ф जह ण वि सक्कमणज्जो अणज्जभासं विणा दु गाहेदुं । तह ववहारेण विणा परमत्थुवदेसणमसक्कं ॥ अणज्जभासं ' विणा दु गाहें तह ववहारेण' विणा 1. जैसे नहीं कुछ भी समर्थ अव्यय अव्यय अव्यय [(सक्कं) + (अणज्जो)] सक्कं (सक्क) विधिक 1 / 1 अनि अणज्जो (अणज्ज) 1 / 1 वि अनार्य [ ( अणज्ज) वि - ( भासा ) 2 / 1] अनार्य भाषा अव्यय बिना अव्यय (गाह) हेकृ अव्यय (ववहार) 3 / 1 अव्यय (18) पादपूरक पढ़ने/समझने के लिए वैसे ही परमत्थुवदेसणमसक्कं [(परमत्थ)+(उवदेसणं)+ (असक्कं )] [(परमत्थ) - (उवदेसण) 1 / 1] परमार्थ का उपदेश देना असक्कं (असक्क) विधि 1/1 अि संभव नहीं व्यवहार के बिना अन्वय- जह अणज्जो अणज्जभासं विणा दु वि गाहेदुं सक्कं ण तह ववहारेण विणा परमत्थुवदेसणमसक्कं । अर्थ- जैसे अनार्य (व्यक्ति) अनार्य भाषा के बिना कुछ भी पढ़ने/ समझने के लिए समर्थ नहीं ( है ), वैसे ही व्यवहार ( बाह्यदृष्टि / लोकदृष्टि) के बिना परमार्थ (एकत्वरूप शुद्ध आत्मा) का उपदेश देना संभव नहीं ( है ) । 'बिना ' के योग में द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। समयसार (खण्ड-1)Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130