Book Title: Samaysara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 40
________________ 23. अण्णाणमोहिदमदी मज्झमिणं भणदि पोग्गलं दव्वं। बद्धमबद्धं च तहा जीवो बहुभावसंजुत्तो॥ मेरा अण्णाणमोहिदमदी [(अण्णाण) वि-(मोहिद)भूकृ- अज्ञान से मूर्च्छित (मदि) 1/1 वि] हुई बुद्धिवाला मज्झमिणं [(मज्झं)+ (इणं)] मज्झं (अम्ह) 6/1 स इणं (इम) 2/1 सवि इस भणदि (भण) व 3/1 सक कहता है पोग्गलं (पोग्गल) 2/1 पुद्गल दव्वं (दव्व) 2/1 द्रव्य को बद्धमबद्धं [(बद्धं)+(अबद्धं)] बद्धं (बद्ध) भूक 2/1 अनि बद्ध अबद्धं (अ-बद्ध) भूकृ 2/1 अनि अव्यय पादपूरक तथा जीवो (जीव) 1/1 जीव बहुभावसंजुत्तो [(बहु) वि-(भाव)- अनेक प्रकार के भावों (संजुत्त) भूक 1/1 अनि] से युक्त अबद्ध तहा अव्यय अन्वय- अण्णाणमोहिदमदी बहुभावसंजुत्तो जीवो बद्धं तहा अबद्धं च पोग्गलं दव्वं मज्झमिणं भणदि। ___ अर्थ-(जो) (जीव) अज्ञान से मूर्छित हुई बुद्धिवाला (है) तथा अनेक प्रकार के (राग, द्वेष, मोह आदि) भावों से युक्त (है) (वह) जीव (ही) इस बद्ध (अपने से जुड़ी हुई) (देह) को तथा अबद्ध (देह से भिन्न) पुद्गल द्रव्य को मेरा कहता समयसार (खण्ड-1) (33)

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