Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 88
________________ 8. जहण वि सक्कमणज्जो अणज्जभासं विणा दु गाहेदुं। तह ववहारेण विणा परमत्थुवदेसणमसक्कं॥ 9. जो हि सुदेणहिगच्छदि अप्पाणमिणं तु केवलं सुद्ध। तं सुदकेवलिमिसिणो भणंति लोयप्पदीवयरा॥ 10. जो सुदणाणं सव्वं जाणदि सुदकेवलिं तमाहु जिणा। णाणं अप्पा सव्वं जम्हा सुदकेवली तम्हा॥ 11. ववहारोऽभूदत्थो भूदत्थो देसिदो दु सुद्धणओ। भूदत्थमस्सिदो खलु सम्मादिट्ठी हवदि जीवो॥ 12. सुद्धो सुद्धादेसो णादव्वो परमभावदरिसीहिं। ववहारदेसिदा पुण जे दु अपरमे टिदा भावे॥ 13. भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च। आसवसंवरणिज्जर बंधो मोक्खो य सम्मत्तं।। 14. जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुढे अणण्णयं णियदं। - अविसेसमसंजुत्तं तं सुद्धणयं वियाणीहि। 15. जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुढे अणण्णमविसेसं। अपदेससुत्तमझ पस्सदि जिणसासणं सव्वं। समयसार (खण्ड-1) (81)Page Navigation
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