Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 94
________________ 56. ववहारेण दु एदे जीवस्स हवंति वण्णमादीया। __ गुणठाणंता भावा ण दु केई णिच्छयणयस्स। 57. एदेहिं य सम्बन्धो जहेव खीरोदयं मुणेदव्वो। ण य होंति तस्स ताणि दु उवओगगुणाधिगो जम्हा।। 58. पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी। मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई।। 59. तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सि, वण्णं। जीवस्स एस वण्णो जिणेहि ववहारदो उत्तो। 60. गंधरसफासरूवा देहो संठाणमाइया जे या सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति॥ 61. तत्थ भवे जीवाणं संसारत्थाण होंति वण्णादी। संसारपमुक्काणं णथि हु वण्णादओ केई।। 62. जीवो चेव हि एदे सव्वे भाव त्ति मण्णसे जदि हि। जीवस्साजीवस्स य णत्थि विसेसो दु दे कोई।। 63. अह संसारत्थाणं जीवाणं तुज्झ होंति वण्णादी। ___ तम्हा संसारत्था जीवा रूवित्तमावण्णा॥ समयसार (खण्ड-1) (87)Page Navigation
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