Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 91
________________ 32. जो मोहं तु जिणित्ता णाणसहावाधियं मुणदि आद। तं जिदमोहं साहुं परमट्ठवियाणया बेंति॥ 33. जिदमोहस्स दु जइया खीणो मोहो हविज्ज साहुस्स। तइया हु खीणमोहो भण्णदि सो णिच्छयविदूहि।। 34. सव्वे भावे जम्हा पच्चक्खाई परे त्ति णादूणं। तम्हा पच्चक्खाणं णाणं णियमा मुणेदव्वं॥ 35. जह णाम को वि पुरिसो परदव्वमिणं ति जाणिदुं चयदि। तह सव्वे परभावे णाऊण विमुञ्चदे णाणी॥ 36. णत्थि मम को वि मोहो बुज्झदि उवओग एव अहमेक्को। तं मोहणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया बेंति॥ 37. णत्थि मम धम्म आदी बुज्झदि उवओग एव अहमेक्को। तं धम्मणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया बेंति॥ 38. अहमेक्को खलु सुद्धो दंसणणाणमइओ सदारूवी। ण वि अस्थि मज्झ किंचि वि अण्णं परमाणुमेत्तं पि॥ 39. अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई। जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूवेंति॥ (84) समयसार (खण्ड-1)Page Navigation
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