Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 77
________________ 59. तह जीवे कम्माणं' कम्मा' च पस्सिदुं वणं जीवस्स एस वण्णो जिणेहि उत्तो 1. तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं । जीवस्स एस वण्णो जिणेहि ववहारदो उत्तो ॥ हरदो 2. (70) अव्यय (जीव) 7/1 (कम्म) 6/23/2 (कम्म) 6/23/2 अव्यय (पस्स) संक्र (वण्ण) 2 / 1 (जीव ) 6/1 (ए) 1 / 1 सवि ( वण्ण) 1 / 1 (जिण) 3/2 (ववहार) 5 / 1 पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (उत्त) भूकृ 1 / 1 अनि उसी प्रकार जीव में कर्मों से कर्मों से और देखकर बाह्य दिखाव-बनाव को जीव का अन्वय-तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च वण्णं पस्सिदुं जिणेहि उत्तो एस वण्णो ववहारदो जीवस्स । अर्थ - उसी प्रकार जीव में कर्मों से और नोकर्मों से ( उत्पन्न) बाह्य दिखाव- बनाव को देखकर, जिनेन्द्रदेव के द्वारा कहा गया ( है ) ( कि) यह बाह्य दिखाव - बनाव व्यवहार से जीव का ( ही ) ( है ) । यह बाह्य दिखाव-बनाव जिनेन्द्रदेव के द्वारा व्यवहार से कहा गया कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3 - 134 ) वण्ण = बाह्य दिखाव - बनाव Sanskrit-English Dictionary. (outward appearance), Monier Williams, समयसार (खण्ड-1)Page Navigation
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