Book Title: Samaysara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 78
________________ 60. गंधरसफासरूवा देहो संठाणमाइया जे या सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति॥ गंधरसफासरूवा गंध, रस, स्पर्श और का देहो संठाणमाइया आकार आदि [(गंध)-(रस)-(फास)(रूव) 1/2] (देह) 1/1 [(संठाणं)+(आइया)] संठाणं (संठाण) 1/1 आइया (आइय) 1/2 'य' स्वार्थिक (ज) 1/2 सवि अव्यय (सव्व) 1/2 सवि (ववहार) 6/1-5/1 अव्यय (णिच्छयदण्हु) 1/2 वि (ववदिस) व 3/2 सक 4 तथा सब ववहारस्स व्यवहार से पादपूरक निश्चय के जानकार कहते हैं णिच्छयदण्हू ववदिसंति अन्वय- जे गंधरसफासरूवा देहो य संठाणमाइया सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति। . अर्थ- जो गंध, रस, स्पर्श और रूप (हैं) (जो) देह (है) तथा (जो) आकार आदि (हैं), (वे) सब व्यवहार से (जीव के) (जितेन्द्रियों द्वारा) (कथित हैं)। (ऐसा) निश्चय के जानकार कहते हैं। 1. कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) समयसार (खण्ड-1) (71)

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