Book Title: Samaysara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 66
________________ 48. एमेव य ववहारो अज्झवसाणादि अण्णभावाणं। जीवो त्ति कदो सुत्ते तत्थेक्को णिच्छिदो जीवो॥ एमेव ववहारो अज्झवसाणादि अण्णभावाणं जीवो त्ति अव्यय इसी प्रकार अव्यय पादपूरक (ववहार) 1/1 व्यवहार [(अज्झवसाण)+(आदि)] [(अज्झवसाण)-(आदि)'1/2] अध्यवसान वगैरह [(अण्ण) वि-(भाव) 4/2] अन्य (पुद्गल से उत्पन्न) भावों के लिए [(जीवो) + (इति)] जीवो (जीव) 1/1 जीव इति (अ) = शब्दस्वरूपद्योतक (कद) भूकृ 1/1 अनि माना गया (सुत्त) 7/1 आगम में [(तत्थ)+एक्को)] तत्थ (अ) = वहाँ वहाँ एक्को (एक्क) 1/1 वि एक (णिच्छिद) भूकृ 1/1 अनि निश्चित किया हुआ (जीव) 1/1 जीव कदो तत्थेक्को णिच्छिदो जीवो अन्वय-एमेव य अज्झवसाणादि अण्णभावाणं जीवो त्ति सुत्ते ववहारो कदो तत्थ णिच्छिदो जीवो एक्को। अर्थ- इसी प्रकार अध्वसान वगैरह अन्य (पुद्गल से उत्पन्न) भावों के लिए (कहा गया) 'जीव' आगम में व्यवहार माना गया (है) अर्थात् व्यवहार नय से कहा गया है (किन्तु) वहाँ (रागादि भावों में) निश्चित किया हुआ जीव (तो) एक (ही) (है)। 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘आदी' के स्थान पर 'आदि' किया गया है। नोटः संपादक द्वारा अनूदित समयसार (खण्ड-1) (59)

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