Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 71
________________ 53. जीवस्स णत्थि केई जोयट्ठाणा ण बंधठाणा वा। णेव य उदयट्ठाणा ण मग्गणट्ठाणया केई। जीवस्स (जीव) 6/1 जीव के अव्यय णत्थि केई जोयट्ठाणा अव्यय [(जोय)-(ट्ठाण) 1/2] अव्यय [(बंध)-(ठाण) 1/2] अव्यय नहीं है कोई योगस्थान नहीं बंधस्थान बंधठाणा अव्यय न ही अव्यय और उदयट्ठाणा [(उदय)-(ट्ठाण) 1/2] अव्यय [(मग्गण)-(ट्ठाणय) 1/2] 'य' स्वार्थिक उदयस्थान नहीं मार्गणास्थान मग्गणट्ठाणया केई अव्यय कोई अन्वय- जीवस्स केई जोयट्ठाणा णत्थि बंधठाणा वा ण य णेव उदयट्ठाणा केई मग्गणट्ठाणया ण। अर्थ- जीव के कोई योगस्थान नहीं है, बंधस्थान भी नहीं (है) और न ही उदयस्थान (है), कोई मार्गणास्थान (भी) नहीं (है)। (64) समयसार (खण्ड-1)Page Navigation
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