Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 52
________________ 35. जह णाम को वि पुरिसो परदव्वमिणं ति जाणिदुं चयदि तह सव्वे परभावे जहणाम को विपुरिसो परदव्वमिणं ति जाणिदुं चयदि । तह सव्वे परभावे णाऊण णाऊण विमुञ्चदे णाणी || णाऊण विमुञ्चदे णाणी अव्यय अव्यय (क) 1/1 सवि अव्यय (पुरिस) 1 / 1 [(परदव्वं) + (इणं) + (इति)] परदव्वं [ ( पर) वि- (दव्व) 1 / 1 ] पर वस्तु इणं (इम) 1/1 सवि यह इस प्रकार इति (अ) (जाण) संकृ जानकर (चय) व 3/1 सक छोड़ देता है अव्यय वैसे ही सभी परभावों को समझकर त्याग देता है ज्ञानी = इस प्रकार (सव्व) 2/2 सवि [ ( पर) वि - (भाव) 2 / 2] (णा) संक्र जैसे पादपूरक कोई भी मनुष्य (विमुञ्च) व 3/1 सक ( णाणि) 1 / 1 वि अन्वय- जह णाम कोवि पुरिसो परदव्वमिणं ति जाणिदुं चयदि तह णाणी सव्वे परभावे णाऊण विमुञ्चदे । अर्थ - जैसे कोई भी मनुष्य, यह पर वस्तु ( है ) इस प्रकार जानकर ( उसको) छोड़ देता है, वैसे ही ज्ञानी (मनुष्य) सभी पर भावों को समझकर (उनको ) त्याग देता है। समयसार (खण्ड-1 1) (45)Page Navigation
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