Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 63
________________ 45. अट्ठविहं पि य कम्मं सव्वं पोग्गलमयं जिणा बेंति। जस्स फलं तं वुच्चदि दुक्खं ति विपच्चमाणस्स। अट्ठविहं पि कम्म सव्वं पोग्गलमयं जिणा बेंति [(अट्ठविहं)+ (अपि)] अट्ठविहं (अट्ठविह) 2/1 वि । आठ प्रकार के अपि' (अ) = पादपूरक अव्यय पादपूरक (कम्म) 2/1 कर्म को (सव्व) 2/1 सवि समस्त (पोग्गलमय) 2/1 वि पुद्गलमय (जिण) 1/2 जिन (बेंति) व 3/2 सक अनि कहते हैं (ज) 6/1 सवि (फल) 1/1 फल (त) 2/1 सवि (वुच्चदि) व कर्म 3/1 अनि कहा जाता है [(दुक्खं)+ (इति)] दुक्खं (दुक्ख) 1/1 इति (अ) = शब्दस्वरूपद्योतक (विपच्चमाण) वकृ 6/1 उदय में आता हुआ जिसका फलं उस वुच्चदि दुक्खं ति 1/I दुख विपच्चमाणस्स अन्वय- विपच्चमाणस्स जस्स फलं दुक्खं ति वुच्चदितं अट्ठविहं सव्वं कम्मं पि य जिणा पोग्गलमयं बेंति। अर्थ- उदय में आता हुआ (जो भी कर्म है) जिसका फल (आकुलता रूप) दुख कहा जाता है, उस आठ प्रकार के समस्त कर्म को जिन पुद्गलमय कहते 1. नोटः आप्टेः संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश संपादक द्वारा अनूदित (56) समयसार (खण्ड-1)Page Navigation
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