Book Title: Samaysara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 54
________________ 37. णत्थि मम धम्म-आदी बुज्झदि उवओग एव अहमेक्को। तं धम्मणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया बेंति॥ णत्थि नहीं है मम अव्यय (अम्ह) 6/1 स [(धम्म)-(आदि) 1/2] धम्म-आदी धर्म द्रव्य (तथा) इसी प्रकार और भी समझता है उपयोग (लक्षणवाला) बुज्झदि *उवओग अहमेक्को (बुज्झ) व 3/1 सक (उवओग) 1/1 वि अव्यय [(अहं)+(एक्को )] अहं (अम्ह) 1/1 स एक्को (एक्क) 1/1 वि (त) 2/1 सवि [(धम्म)-(णिम्ममत्त) 2/1] (समय) 6/1 (वियाणय) 1/2 वि (बेंति) व 3/2 सक अनि केवलमात्र उसको धम्मणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया धर्म से निर्ममत्व आत्मा का अनुभव करनेवाले कहते हैं बेति अन्वय- अहमेक्को उवओग एव धम्म आदी मम णत्थि बुज्झदि तं समयस्स वियाणया धम्मणिम्ममत्तं बेंति। अर्थ- (चूँकि) मैं (जीवात्मा) केवलमात्र उपयोग (लक्षणवाला) ही (हूँ), (इसलिए) धर्म द्रव्य (तथा) इसी प्रकार और भी (द्रव्य) मेरे नहीं है। (जो) (कोई) (इस बात को) समझता है उसको आत्मा का अनुभव करनेवाले (आचार्य) धर्म (आदि) (द्रव्यों) से निर्ममत्व (हुआ) कहते हैं। 1. यहाँ 'धम्म आदी' के स्थान पर 'धम्म-आदी' होना चाहिये। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) समयसार (खण्ड-1) (47)Page Navigation
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