Book Title: Samaysara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ 22. एयं तु असन्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो। भूदत्थं जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो। इस असन्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो भूदत्थं (एत-एय) 2/1 सवि अव्यय (अ-सब्भूद) 2/1 वि [(आद)-(वियप्प)2/1] (कर) व 3/1 सक (सं-मूढ) 1/1 वि (भूदत्थ) 2/1 वि पादपूरक अविद्यमान विचार को मन में लाता है अज्ञानी आत्मा में स्थित दृष्टि को जाणतो जानता हुआ ण (जाण) वकृ 1/1 अव्यय (कर) व 3/1 सक करेदि स्वीकार करता है/ मानता है 109 और अव्यय (त) 2/1 सवि (अ-सं-मूढ) 1/1 वि उसको ज्ञानी असंमूढो अन्वय- एयं तु असन्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढो दु भूदत्थं जाणतो तं ण करेदि असंमूढो। अर्थ- (जो) (पूर्णतया) इस अविद्यमान (उक्त तादात्म्य के) विचार को मन में लाता है, (वह) अज्ञानी (है) और (जो) आत्मा में स्थित दृष्टि को अर्थात् स्व और पर के भेद को जानता हुआ उस (उक्त तादात्म्य) को न स्वीकार करता है/न मानता है (वह) ज्ञानी है। (32) समयसार (खण्ड-1)

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