Book Title: Samaysara Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 36
________________ 19. कम्मे णोकम्मम्हि य अहमिदि अहकं च कम्म णोकम्म। जा एसा खलु बुद्धी अप्पडिबुद्धो हवदि ताव॥ कम्मे णोकम्मम्हि कर्म में नो कर्म में और अहमिदि शब्दस्वरूपद्योतक अहकं च *कम्म णोकम्म (कम्म) 7/1 (णोकम्म) 7/1 अव्यय [(अहं) + (इदि)] अहं (अम्ह) 1/1 स इदि (अ) = (अम्ह) 1/1 स अव्यय (कम्म) 1/1 (णोकम्म) 1/1 अव्यय (एता) 1/1 सवि अव्यय (बुद्धि) 1/1 (अप्पडिबुद्ध) 1/1 वि (हव) व 3/1 अक अव्यय एसा खलु बुद्धी अप्पडिबुद्धो हवदि ताव तथा कर्म नो कर्म जब तक ऐसी निस्सन्देह बुद्धि अज्ञानी होता है तब तक अन्वय- अहमिदि कम्मे य णोकम्मम्हि च अहकं कम्म णोकम्मं जा एसा बुद्धी ताव खलु अप्पडिबुद्धो हवदि। अर्थ- मैं कर्म (द्रव्यकर्म व भावकर्म) में (हूँ) और नो कर्म (शरीरादि बाह्य वस्तु) में (हूँ) तथा (तादात्म्य रूप से) मैं कर्म (और) नो कर्म (ही) (हूँ) जब तक ऐसी बुद्धि (रहती है) तब तक (वह) (व्यक्ति) निस्सन्देह अज्ञानी (मूर्च्छित) होता है। * प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) समयसार (खण्ड-1) (29)

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