Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । १४५ अधिकरणं जीवाजीवाः ॥ ८॥ सूत्रार्थ-अधिकरण जीव तथा अजीव हैं। भाष्यम्-अधिकरणं द्विविधम् । द्रव्याधिकरणं भावाधिकरणं च । तत्र द्रव्याधिकरणं छेदनभेदनादि शस्त्रं च दशविधम् । भावाधिकरणमष्टोत्तरशतविधम् । एतदुभयं जीवाधिकरणमजीवाधिकरणं च ॥ तत्र. विशेषव्याख्या-अधिकरण दो प्रकारके होते हैं । एक द्रव्याधिकरण, दूसरा भावाधिकरण । इनमें द्रव्याधिकरण छेदनभेदनादि तथा शस्त्र जो कि दश प्रकारका है । और भावाधिकरण एकसौ आठ (१०८) हैं (अ. ६ सू. ९)। यह दोनों जीवाधिकरण और अजीवाधिकरणभी हैं ॥ ८ ॥ उनमेंसे: आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥९॥ सूत्रार्थ-आद्य अर्थात् प्रथम जीवाधिकरण संरंभादिभेदसे संक्षेपसे तीन प्रकारका, पुनः वह एक २ तीन प्रकारका, पुनः वह एक २ तीन प्रकारका, और पुनः वह एक २ चार प्रकारका है। भाष्यम्-आद्यमिति सूत्रक्रमप्रामाण्याज्जीवाधिकरणमाह । तत्समासतस्त्रिविधम्। संरम्भः समारम्भ आरम्भ इति । एतत्पुनरेकशः कायवाङमनोयोगविशेषात्रिविधं भवति । तद्यथाकायसंरम्भः वाक्संरम्भः मनःसंरम्भः कायसमारम्भः वाक्समारम्भः मनःसमारम्भः कायारम्भः वागारम्भः मनआरम्भ इति ॥ एतदप्येकशः कृतकारितानुमतविशेषात्रिविधं भवति । तद्यथा-कृतकायसंरम्भः कारितकायसंरम्भः अनुमतकायसंरम्भः कृतवाक्संरम्भ कारितवाक्संरम्भः अनुमतवाक्संरम्भः कृतमनःसंरम्भः कारितमनःसंरम्भः अनुमतमनःसंरम्भः एवं समारम्भारम्भावपि ॥ तदपि पुनरेकशः कषायविशेषाञ्चतुर्विधम् । तद्यथा-क्रोधकृतकायसंरम्भः मानकृतकायसंरम्भः मायाकृतकायसंरम्भः लोभकृतकायसंरम्भः क्रोधकारितकायसंरम्भः मानकारितकायसंरम्भः मायाकारितकायसंरम्भः लोभकारितकायरम्भः क्रोधानुमतकायसंरम्भः मानानुमतकायसंरम्भः मायानुमतकायसंरम्भः लोभानुमतकायसंरम्भः । एवं वाङ्मनोयोगाभ्यामपि वक्तव्यम् । तथा समारम्भारम्भौ ॥ तदेवं जीवाधिकरणं समासेनैकशः षट्त्रिंशद्विकल्पं भवति । त्रिविधमप्यष्टोत्तरशतविकल्पं भवतीति ।। संरम्भः सकषायः परितापनंया भवेत्समारम्भः । आरम्भः प्राणिवधः त्रिविधो योगस्ततो ज्ञेयः ॥ विशेषव्याख्या—पूर्वसूत्र (८) क्रमके प्रमाणसे आद्यशब्दसे जीवाधिकरणका ग्रहण है । वह प्रथम संक्षेपसे संरम्भ, समारम्भ, और आरम्भ इन भेदोंसे तीन प्रकारका है । और यह एक २ काय, वाक्, तथा मनोरूप योगविशेषसे तीन २ प्रकारका है। जैसे-कायसंरम्भ, वाक्संरम्भ और मनःसंरम्भ; पुनः कायसमारंभ, वाक्समारम्भ, तथा मनःसमारम्भ; और काय-आरम्भ, वाक्-आरम्भ, वा मन-आरम्भ; इस प्रकारसे प्रत्येकके तीन २ भेद Jain Education Internasal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276