Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 246
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् तत्र्येककाययोगायोगानाम् ॥४२॥ __ भाष्यम्-तदेतच्चतुर्विधं शुक्लध्यानं त्रियोगस्यान्यतमयोगस्य काययोगस्यायोगस्य च यथासङ्घयं भवति । तत्र त्रियोगानां पृथक्त्ववितर्कमैकान्यतमयोगानामेकत्ववितर्क काययोगानां सूक्ष्मक्रियमप्रतिपात्ययोगानां व्युपरतक्रियमनिवृत्तीति । सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-यह चारो प्रकारका शुक्ल ध्यान, त्रियोगको, तीनोमें एक योगवालेको, काययोगवालेको, तथा अयोगको क्रमसे यथासंख्यकरके होता है। अर्थात् काय, वाक् और मन ये तीनो योग जिसको हैं उसको पृथक्त्ववितर्क नाम शुक्ल ध्यान होता है, और इन तीनों योगोंमेंसे कोई भी एक योग जिसको है उसको एकत्ववितर्क नाम शुक्लध्यान होता है। काययोगवालेको सूक्ष्मक्रियातिपाति नामक शुक्लध्यान होता है, और अयोग अर्थात् सर्वथा योगसे रहित ( अयोगकेवली) को व्युपरतक्रियानिवृति नामक शुक्लध्यान होता है ॥ ४२ ॥ - एकाश्रये सवितर्के पूर्वे ॥ ४३ ॥ भाष्यम्-एकद्रव्याश्रये सवितर्के पूर्वे ध्याने प्रथमद्वितीये । तत्र सविचारं प्रथमम् । सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-पूर्वके जो दो शुक्लध्यान हैं अर्थात् पृथक्त्ववितर्क तथा एकत्ववितर्क वे दोनो एक द्रव्यके आश्रयीभूत तथा वितर्कसहित होते हैं । इनमेंसे जो प्रथम पृथक्त्ववितर्क है वह विचारसहित होता है ॥ ४३ ॥ अविचारं द्वितीयम् ॥ ४४ ॥ भाष्यम्-अविचारं सवितर्क द्वितीयं ध्यानं भवति । सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-और द्वितीय जो एकत्ववितर्क शुक्लध्यान है वह तो विचाररहित तथा वितर्कसहित होता है । ४४ ॥ - अत्राह । वितर्कविचारयोः कः प्रतिविशेष इति । अत्रोच्यते अब कहते हैं वितर्क तथा विचारमें क्या प्रतिविशेष अर्थात् भेद है । इस लिये आगेका सूत्र कहते हैं वितर्कः श्रुतम् ॥ ४५॥ भाष्यम्-यथोक्तं श्रुतज्ञानं वितर्को भवति ॥ सूथार्थ-विशेषव्याख्या-पूर्वकथित श्रुतज्ञान अर्थात् पूर्वप्रसङ्गमें जैसे श्रुतज्ञानका लक्षण कहा है वही यथोक्त श्रुतज्ञान वितर्क है ॥ ४५ ॥ . विचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिः॥ ४६ ॥ भाष्यम्-अर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्तिर्विचार इति । सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या–अर्थ, व्यञ्जन, तथा योगकी जो संक्रान्ति उसको विचार कहते हैं । यहांपर अर्थ शब्दसे ध्येय पदार्थ वा द्रव्य अथवा पर्यायका ग्रहण है, व्यञ्जनसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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