Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 253
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । २२७ कह आये हैं । इसप्रकार संवरसे संवृत ( युक्त ) महात्माको सम्यग्व्यायामयुक्त जो नूतन कर्म हैं उनकी वृद्धि नहीं होती, तथा जो पूर्वकाल के सञ्चित कर्म हैं उनका भी यथोक्त ( हुए ) निर्जरा के हेतुओं ( तपआदिकों) से अत्यन्त क्षय होता है । उसके अनन्तर अर्थात् कर्मोंके सर्वथा क्षय होनेके पश्चात् क्रमसे सम्पूर्ण द्रव्य तथा सम्पूर्ण पर्य्याय विषयक, अर्थात् सब द्रव्य और सब पर्य्यायोंको साक्षात्कार करनेवाला, परम ऐश्वर्य ( सबसे उत्कृष्ट ऐश्वर्य ) सहित केवल ज्ञान दर्शनको पाकर शुद्ध ( सवर्था पवित्र ), बुद्ध ( सर्व द्रव्य पर्य्यायोंका ज्ञाता ), सर्वद्रष्टा केवली जिन भगवान् यह प्राणी होता है । और उसके पश्चात् अति सूक्ष्म शुभ चार कर्म शेषवाला यह अलग रहजाता है, और आयुः कर्मसंस्कारके वशसे संसारमें विहरता है ॥ २ ॥ ततोऽस्य और इसको : कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः ॥ ३॥ भाष्यम् – कृत्स्नकर्मक्षयलक्षणो मोक्षो भवति । पूर्व क्षीणानि चत्वारि कर्माणि पश्चाद्वेदनीयनामगोत्रायुष्कक्षयो भवति । तत्क्षयसमकालमेवौदारिकशरीरवियुक्तस्यास्य जन्मनः प्रहा - .णम् । हेत्वभावाच्चोत्तरस्याप्रादुर्भावः । एषावस्था कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्ष इत्युच्यते । सूत्रार्थ — विशेषव्याख्या - सम्पूर्ण कर्मों का क्षयरूप मोक्ष प्राप्त होता है । इस रीतिसे मोहनीय आदि चार कर्मप्रकृति तो प्रथमही क्षीण हो चुकी थी, और इसके पश्चात् वेदनीय, नाम, गोत्र, तथा आयु ये चार जो शुभ कर्म शेष रह गये थे, वेभी क्षयको प्राप्त होते हैं । और इन चारोंके क्षयके समकालमें ही औदारिक शरीर से रहित जो यह जीव उसके जन्मका सर्वथा प्रयाण अर्थात् नाश होता है । क्योंकि हेतु ( शरीरधारणके हेतु ) ओंके अभाव से पुनः उत्तरजन्मका प्रादुर्भाव नहीं होता है । इस प्रकार यह अवस्था सम्पूर्ण कर्मोंका क्षयरूप मोक्ष वा मुक्तिस्वरूपसे कही जाती है ॥ ३ ॥ किं चान्यत् । और अन्य यह भी है: औपशमिकादिभव्यत्वाभावाच्चान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥ ४ ॥ भाष्यम् – औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकौयिकपारिणामिकानां भावानां भव्यत्वस्य याभावान्मोक्षो भवति अन्यत्र केवलसम्यक्त्व केवलज्ञानकेवलदर्शन सिद्धत्वभ्यः । एते ह्यस्य क्षायिका नित्या मुक्तस्यापि भवन्ति ॥ सूत्रार्थ - विशेषव्याख्या - औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक, तथा पारिणामिक भावोंके और भव्यत्वके भी अभावसे मोक्ष होता है, किन्तु केवल सम्यक्त्व, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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