Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 249
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । २२३ किस संयम आदिमें होते हैं इस विषयको कहते हैं । जैसे - पुलाक, बकुश, तथा प्रतिसेवनाकुशील, ये दो २ संयमोंमें अर्थात् सामायिक तथा छेदोपस्थाप्यमें होते हैं । कषायकुशील निर्ग्रन्थ भी परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसंपराय इन दोनो संयमोमें होते हैं । और निर्ग्रन्थ तथा स्नातक केवल एक यथाख्यातसंयम में होते हैं ॥ श्रुतम् । पुलाकबकुशप्रतिसेवनाकुशीला उत्कृष्टेनाभिन्नाक्षरदशपूर्वधराः । कषायकुशील - निर्ग्रन्थौ चतुर्दशपूर्वधरौ । जघन्येन पुलाकस्य श्रुतमाचारवस्तु । वकुशकुशीलनिर्मन्थानां श्रुतमष्ठौ प्रवचनमातरः । श्रुतापगतः केवली स्नातक इति ॥ श्रुतके विषय में:- पुलाक, बकुश, और प्रतिसेवनाकुशील ये तीन निर्ग्रन्थ उत्कृष्टतासे अर्थात् अधिक से अधिक अभिन्नाक्षर दश पूर्वधर होते हैं । कषायकुशील और निर्ग्रन्थ ये दोनों निर्ग्रन्थ विशेष चतुर्दश पूर्वधर होते हैं । और जघन्यता ( न्यूनता ) से तो पुलाकका श्रुतकेवल आचारवस्तु है । और बकुश, कुशील तथा निर्ग्रन्थोंका श्रुत जघन्य अपेक्षासे अर्थात् न्यूनतासे केवल प्रवचनकी माता हैं । और केवली स्नातक तो श्रुतापगत हैं । प्रतिसेवना । पञ्चानां मूलगुणानां रात्रिभोजनविरतिष्ठानां पराभियोगाद्बलात्कारेणाम्यतमं प्रतिसेवमानः पुलाको भवति । मैथुनमित्येके । बकुशो द्विविधः उपकरणबकुशः शरीरबकुशश्च । तत्रोपकरणाभिष्वक्तचित्तो विविधविचित्र महाधनोपकरणपरिग्रहयुक्तो बहुवि - शेषोपकरणकांक्षायुक्तो नित्यं तत्प्रतिसंस्कारसेवी भिक्षुरुपकरणबकुशो भवति । शरीराभिवक्तचित्तो विभूषार्थं तत्प्रतिसंस्कारसेवी शरीरबकुशः । प्रतिसेवनाकुशीलो मूलगुणानविराधयन्नुत्तरगुणेषु कांचिद्विराधनां प्रतिसेवते । कषायकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातकानां प्रति सेवना नास्ति ॥ प्रतिसेवना, पांच मूलगुण, तथा रात्रिभोजनसे विरतिसहित षद्, अर्थात् पांच मूलगुण और रात्रिभोजनसे विरति ( उपराम ) लेकर छः हुए, इनमेंसे, दूसरोंके अभियोग अर्थात् प्रेरणासे बलात्कार ( जबरदस्ती ) से किसी एकका प्रतिसेवन करनेवाला पुलाक होता है । इनमेंसे मैथुनका ग्रहण किसी एक आचार्य्यके मत से है । बकुश दो प्रकार के होते हैं; एक तो उपकरणबकुश और दूसरा शरीरबकुश होता है । इनमेंसे उपकरणों ( सामग्रियों) में चित्त लगानेवाला, विविध अर्थात् अनेक उपकरणोंके परिग्रहसहित, बहुत अधिक उपकरणोंकी प्रतिदिन अर्थात् सदा उनके प्रतिसंस्कारों को सेवन करनेवाला भिक्षुक उपकरणबंकुश कहा जाता है । और शरीरमें दत्तचित्त, विभूषणोंके लिये अर्थात् शरीरको भूषित करनेके लिये जो प्रतिसंस्कारोंका सेवन करनेवाला है वह शरीरबकुश भिक्षुक है । और जो मूलगणोंका विराध ( विधात ) न करता हुआ उत्तरगुणोंमें किसी एक प्रकारके विचित्र महाधनवाले अभिलाषा करनेवाला और 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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