Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 248
________________ २२२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् भाष्यम्-पुलाको बकुशः कुशीलो निर्ग्रन्थः स्नातक इत्येते पञ्चनिम्रन्थविशेषा भवन्ति। तत्र सततमप्रतिपातिनो जिनोक्तादागमान्निर्ग्रन्थपुलाकाः । नैर्घन्ध्यं प्रति प्रस्थिताः शरीरोपकरणविभूषानुवर्तिन ऋद्धियशस्कामाः सातगौरवाश्रिता अविविक्तपरिचाराश्छेदशबलयुक्ता निर्ग्रन्था बकुशाः । कुशीला द्विविधाः प्रतिसेवनाकुशीलाः कषायकुशीलाश्च । तत्र प्रतिसेवना. कुशीलाः नैर्ग्रन्थ्यं प्रति प्रस्थिता अनियतेन्द्रियाः कथंचित्किचिदुत्तरगुणेषु विराधयन्तरश्चरन्ति ते प्रतिसेवनाकुशीलाः । येषां तु संयतानां सतां कथंचित्संज्वलनकषाया उदीर्यन्ते ते कषायकुशीलाः । ये वीतरागच्छद्मस्था ईर्यापथप्राप्तास्ते निर्ग्रन्थाः । ईर्या योगः पन्थाः संयमः योगसंयमप्राप्ता इत्यर्थः । संयोगाः शैलेशीप्रतिपन्नाश्च केवलिनः स्नातका इति ॥ सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ, तथा स्नातक ये पांच निर्ग्रन्थ हैं । इनमेंसे निरन्तर जो जिनकथित आगमसे कदापि पतित न होवे पुलाक निर्ग्रन्थ हैं । तथा निर्ग्रन्थताके प्रति जो प्रस्थित हुए हैं, किन्तु शरीरके उपकरण भूषण आदिके अनुवर्ती हैं, ऋद्धि (ऐश्वर्य) तथा यशकी कामना करनेवाले हैं, अतिगौरवयुक्त, अविविक्त (नातिपवित्रतायुक्त) परिचारसहित, और छेदशबलयुक्त जो हैं वे बकुश निर्ग्रन्थ हैं । कुशील दो प्रकारके हैं, एक तो प्रतिसेवनाकुशील और द्वितीय कषायकुशील । उनमेंसे जो निर्ग्रन्थता सम्पादन करनेके लिये प्रस्थित हैं सो जो अनियत इंद्रिय हैं, अर्थात् जिनकी इद्रियां सर्वथा स्वाधीन नहीं हैं, और किसी प्रकारसे उत्तरगुणोंमें भी विरोध ( विघात ) करनेवाले हैं वे प्रतिसेवनाकुशील निर्ग्रन्थ है। और जिन्होंने अन्य कषायोंको तो जीत लिया है ऐसे संयम युक्त होनेपर भी जिनके कथंचित् ( किसी प्रकारसे) संज्वलनकषाय उद्रेकताको अर्थात् आविर्भावको प्राप्त होजायँ वे कषायकुशील निम्रन्थ हैं । और जो वीतराग छद्मस्थ हैं, तथा इ-पथमें प्राप्त हैं वे निर्ग्रन्थ हैं । यहांपर इ-से योगका ग्रहण है, और पन्था ( पथ ) से संयमका ग्रहण है, इससे यह तात्पर्य्य सिद्ध हुआ कि जो योगसंयममें प्राप्त हैं वे निम्रन्थ आचार्य हैं । और जो योगसहित हैं तथा जो शैलेशीप्राप्त हैं वे स्नातक हैं ॥ ४८॥ - संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपातस्थानविकल्पतःसाध्या:४९ भाष्यम्-एते पुलाकादयः पञ्च निर्ग्रन्थविशेषा एभिः संयमादिभिरनुयोगविकल्पैः साध्या भवन्ति । तद्यथा । सूत्रार्थ-विशेषव्याख्या-इन पुलाक आदि पांचो निम्रन्थोंका आगे कहे हुए संयम आदि विकल्पोंसे साधन करना चाहिये । जैसे:-- संयमः । कः कस्मिन्संयमे भवतीति । उच्यते । पुलाकबकुशप्रतिसेवनाकुशीला द्वयोः संयमयोः सामायिके छेदोपस्थाप्ये च । कषायकुशीलो द्वयोः परिहारविशुद्धौ सूक्ष्मसंपराये च । निर्ग्रन्थस्नातकावेकस्मिन्यथाख्यातसंयमे ॥ सबसे प्रथम संयमका विचार कहते हैं-कौन किसमें होता है, अर्थात् कौन निर्ग्रन्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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