Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 244
________________ रामचन्द्र जैनशास्त्रचालायाम् वेदनाचाच ॥ ३२ ॥ भाष्यम् - वेदनायाश्चामनोज्ञायाः संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहार आर्तमिति । किं चान्यत् ॥ सूत्रार्थ -- विशेषव्याख्या - अमनोज्ञ अप्रिय जो वेदना ( अनुभवविशेष ) है उसके सम्प्रयोग अर्थात् योग होनेपर उससे ( अनिष्ट वेदनासे ) छूटनेके अर्थ जो चित्तकी एकाग्रता है वह आर्तध्यान है ॥ ३२ ॥ और यह भी : २१८ विपरीतं मनोज्ञानाम् ॥ ३३ ॥ भाष्यम् – मनोज्ञानां विषयाणां मनोज्ञायाश्च वेदनाया विप्रयोगे तत्संप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहार आर्तम् । किं चान्यत् ॥ I सूत्रार्थ - विशेषव्याख्या - मनोज्ञ अर्थात् सुन्दर रमणीय तथा प्रिय विषयोंके, और इसी रीतिसे मनोज्ञ प्रियवेदनाके भी वियोग होनेपर उन सबके संयोग के लिये जो चित्तकी एकाग्रता रूप ध्यान है वह भी आर्तध्यान है ॥ ३३ ॥ और यह अन्य भी है:-- निदानं च ॥ ३४ ॥ भाष्यम् – कामोपहतचित्तानां पुनर्भवविषय सुखगृद्धानां निदानमार्तध्यानं भवति । सूत्रार्थ — विशेषव्याख्या - कामनाओंसे जिनका चित्त उपहत अर्थात् दूषित होगया है, इसीसे ऐसे मनुष्योंके अर्थ पुनः संसारके विषयोंकी तृष्णाका कारण वह आर्तध्यान होता है ॥ ३४ ॥ तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ॥ ३५ ॥ भाष्यम् – तदेतदार्तध्यानमविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानामेव भवति । सूत्रार्थ - विशेषव्याख्या —— यह आर्तध्यान अविरत, देशविरत तथा प्रमत्तसंयतगुणस्थानवर्ती जीवोंक होता है ॥ ३५ ॥ हिंसावृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः ॥ ३६ ॥ भाष्यम् – हिंसार्थमनृतवचनार्थ स्तेयार्थ विषयसंरक्षणार्थं च स्मृतिसमन्वाहारो रौद्रध्यानं तदविरतदेशविरतयोरेव भवति । सूत्रार्थ — विशेषव्याख्या - हिंसा के लिये, अमृत अर्थात मिथ्या वचनके लिये, स्तेयचौर्यकर्मके लिये तथा विषयकी रक्षाके लिये चित्तकी एकाग्रतारूप रौद्रध्यान अविरत तथा देशवित प्राणियोंका होता है ॥ ३६ ॥ आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ॥ ३७ ॥ भाष्यम् - आज्ञाविचयाय अपायविचयाय विपाकविचयाय संस्थानविचयाय च स्मृतिस्रमन्त्राहारो धर्मध्यानम् । तदप्रमत्तसंयतस्य भवति । किं चान्यत् सूत्रार्थ – विशेषव्याख्या - आज्ञाविचय, आज्ञा अर्थात् जिनशास्त्रकी आज्ञा उसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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