Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 210
________________ १८४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् यविशेषसे जो संघात ( समूह ) विशेषको उत्पन्न करनेवाला है उसको संघातनाम कर्म कहते हैं । जैसे कि-काष्ठमृत्पिण्ड, तथा लोहका संघात होता है, ऐसे ही शरीरोंका भी होता है । संस्थाननामके षट् (छ) भेद हैं। जैसे-समचतुरस्रनाम, न्यग्रोध (वटवृक्ष) परिमण्डलनाम, साचिनाम (तिर्यक्संस्थाननाम ), कुजनाम, वामननाम, तथा हुण्डनाम, संहनननामके भी छ (६) भेद हैं । जैसे-वज्रर्षभनाराचनाम, अर्धवज्रर्षभनाराचनाम, नाराचनाम, अर्धनाराचनाम, कीलिकानाम, मृपाटिकानाम । स्पर्शनामके आठ भेद हैं । जैसे कठिननाम, मृदुनाम, उष्णनाम, शीतनाम, इत्यादि । रसनामके भी अनेक भेद हैं । जैसे-तिक्तनाम, मधुरनाम, कटुनाम, आम्रनाम, तथा कषायनाम आदि और भी हैं । गन्धनामके भी अनेक भेद हैं। जैसे सुरभिगन्धनाम तथा दुरभिमानगन्धनाम, इत्यादि । वर्णनाम अनेक भेदसहित हैं । जैसे-कालनाम, पीतनाम, तथा अरुणनाम आदि । गतिमें उत्पन्न होनेकी कामनायुक्त और अन्तर्गतिमें जो वर्तमान है उसके ( उस गतिके ) अभिमुख आनुपूर्वीसे जो उस जीवको प्राप्त करनेमें समर्थ है उसको आनुपूर्वी नाम कहते हैं। और निर्माण नामसे निर्मित (रचित ) जो शरीरत्व था अङ्गोपाङ्ग है, उनके विनिवेशक्रम अर्थात् यथायोग्य स्थानमें संस्थापक क्रमको ही कोई २ नियामकको आनुपूर्वी नाम कहते हैं । अगुरुलघुपरिणामके नियामकको अगुरुलघुनाम कहते हैं। शरीर, अङ्ग तथा उपाङ्गोंके उपघातकको उपघातकनाम कहते हैं । अपने पराक्रम तथा विजय आदिके उपघातका जो जनक ( उत्पन्न करनेवाला) अथवा परके त्रासके प्रतिघातका जो जनक है उसको पराघातनाम कहते हैं । आतपसामर्थ्य (शक्ति) का जो जनक ( उत्पादक ) है वह आतपनाम है, प्रकाशके सामर्थ्यका जो जनक है वह उद्योतनाम है । प्राण अपान पुद्गल ग्रहण करनेकी शक्तिका जो उत्पादक है वह उच्छ्वासनाम है । तथा लब्धि, शिक्षा, और ऋद्धि है कारण जिसका ऐसी जो आकाशगति है उस आकाशगतिका जो जनक है वह विहायोगतिनाम है। पृथकशरीरनिर्वर्तकं प्रत्येकशरीरनाम । अनेकजीवसाधारणशरीरनिर्वतकं साधारणशरीरनाम । त्रसभावनिर्वर्तकं त्रसनाम । स्थावरभावनिर्वर्तकं स्थावरनाम । सौभाग्यनिर्वर्तक सुभगनाम । दौर्भाग्यनिर्वर्तकं दुर्भगनाम । सौस्वर्यनिर्वर्तकं सुस्वरनाम । दौस्वर्यनिर्वर्तकं दुःस्वरनाम । शुभभावशोभामाङ्गल्यनिर्वर्तकं शुभनाम । तद्विपरीतनिवर्तकमशुभनाम । सूक्ष्मशरीरनिर्वर्तकं सूक्ष्मनाम । बादरशरीरनिर्वर्तकं बादरनाम ॥ पर्याप्तिः पञ्चविधा । तद्यथा । आहारपर्याप्तिः शरीरपर्याप्तिः इन्द्रियपर्याप्तिः प्राणापानपर्याप्तिः भाषापर्याप्तिरिति । पर्याप्तिः क्रियापरिसमाप्तिरात्मनः । शरीरेन्द्रियवाङ्मनःप्राणापानयोग्यदलिकद्रव्याहरणक्रियापरिसमाप्तिराहारपर्याप्तिः । गृहीतस्य शरीरतया संस्थापनक्रियापरिसमाप्तिः शरीरपर्याप्तिः । १ आकारविशेषको संस्थान कहते हैं। २ शरीर तथा अवयवोंकी सन्धिविशेषको संहनन कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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