Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 215
________________ १८९ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । निमित्तसे अन्यजातीयकत्व होनेसे ( अपनेसे भिन्न जातिमें सम्बन्ध रखनेसे ) इनमें संक्रम नहीं है। और अपवर्तन तो सब प्रकृतियोंका होता है। और अपवर्तन हम आयुष्क कर्मके वर्णनमें वर्णन (निरूपण )करचुके हैं (अ. २, सू. ५२ ) ॥ २२ ॥ स यथानाम ॥ २३ ॥ भाष्यम्-सोऽनुभावो गतिनामादीनां यथानाम विपच्यते ॥ सूत्रार्थ-वह अनुभाव गति नाम आदिके यथानाम विपाकको प्राप्त होता है। अर्थात् गतिविपाक, जातिविपाक, नामविपाक इत्यादिरूपसे विपाकको प्राप्त होता है ॥ २३ ॥ ततश्च निर्जरा ॥२४॥ सूत्रार्थ-विपाकसे निर्जरा होती है ॥ २४ ॥ भाष्यम्-ततश्चानुभावात्कर्मनिर्जरा भवतीति निर्जरा क्षयो वेदनेत्येकार्थ । अत्र चशब्दो हेत्वन्तरमपेक्षते तपसा निर्जरा चेति वक्ष्यते ।। विशेषव्याख्या-कर्मप्रकृतियोंके अनुभाव अर्थात् विपाक होनेपर कर्मकी निर्जरा होजाती है । अर्थात् विपाकके पश्चात् कर्मोंका नाश होजाता है । निर्जरा, क्षय, वेदना, ये समानार्थक शब्द हैं । इस सूत्रमें जो च शब्द है वह दूसरे हेतुकी अपेक्षा रखता है । अर्थात् “ततः-विपाकात् अन्यथा च निर्जरा भवति" विपाकसे और अन्य हेतुसे भी निर्जरा होती है । तपसे भी निर्जरा होती है, यह विषय आगे कहेंगे (अ. ९ सू. ३) ॥ २४॥ उक्तोऽनुभावबन्धः । प्रदेशबन्धं वक्ष्यामः । अनुभावबन्धको कहचुके, अब प्रदेशबन्धको कहते हैं। नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाढस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः ॥२५॥ सूत्रार्थ-नामहेतुक, सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही,अनन्तानन्तप्रदेशयुक्त, स्थित, कर्मग्रहणयोग्य पुद्गल, सम्पूर्ण आत्मप्रदेशमें सब ओरसे योगविशेषकरके बन्धको प्राप्त होते हैं ॥ २५ ॥ __भाष्यम्-नामप्रत्ययाः पुद्गला बध्यन्ते । नाम प्रत्यय एषां ते इमे नामप्रत्ययाः । नामनिमित्ता नामहेतुका नामकारणा इत्यर्थः । सर्वतस्तिर्यगूर्ध्वमधश्च वध्यन्ते । योगविशेषात् काय. वाङानःकर्मयोगविशेषाच्च बध्यन्ते । सूक्ष्मा बध्यन्ते न बादराः । एकक्षेत्रावगाढा बध्यन्ते न क्षेत्रान्तरावगाढाः । स्थिताश्च बध्यन्ते न गतिसमापन्नाः । सर्वात्मप्रदेशेषु सर्वप्रकृतिपुद्गलाः सर्वात्मप्रदेशेषु बध्यन्ते । एकैको ह्यात्मप्रदेशोऽनन्तैः कर्मप्रदेशैर्बद्धः । अनन्तानन्तप्रदेशाः कर्मग्रहणयोग्याः पुद्गला बध्यन्ते न सङ्खथेयासङ्खयेयानन्तप्रदेशाः। कुतोऽग्रहणयोग्यत्वात्प्रदेशानामिति एष प्रदेशबन्धो भवति ॥ १ अपवर्तनका अर्थ है दूरीकरण, जैसे आयुष्कके दो भेद बताये हैं एक अपवर्तनीय, दूसरा अनपवर्तनीय, जैसे नारक देवादिक आयुष्कका अपवर्तन नहीं होता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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