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.... सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
१६९ भाष्यम्-ऊर्ध्वव्यतिक्रमः अधोव्यतिक्रमः तिर्यग्व्यतिक्रमः क्षेत्रवृद्धिः स्मृत्यन्तर्धानमित्येते पञ्च दिग्वतस्यातिचारा भवन्ति । स्मृत्यन्तर्धानं नाम स्मृतेभ्रंशोऽन्तर्धानमिति ।।
विशेषव्याख्या-अहिंसाआदि पांच व्रतोंके अतीचारोंका व्याख्यान होगया, अब दिग्वतादि सत्वशीलोंके पांच २ अतीचार क्रमसे कहते हैं। उनमें प्रथम दिग्वतके जो नियम बांधे हैं, सो ऊर्ध्वभागका व्यतिक्रम अर्थात् नियत किये हुए स्थानसे अधिक गमनादि; ऐसे ही अधोभागमें (नीचेकी ओर )परिमाणसे अधिक गमनादि अधोव्यतिक्रम है २ आठों दिशाओंमें परिमाणसे अधिक देशमें गमनादि तिर्यग्व्यतिक्रम है ३ नियत परिमाणसे अधिक क्षेत्र (देश )की सीमाको बढ़ालेना यह क्षेत्रवृद्धिनामा अतिचार है ४ तथा स्मृतिका अन्तर्धान अर्थात् कहांतक सीमा की थी उसकी स्मृति न रहना, विस्मृत होके अधिक देशमें गमनागमनादि व्यवहार करना ५ यह स्मृत्यन्तर्धाननामा पञ्चम दिग्वतका अतीचार है ॥ २५ ॥
आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥ २६ ॥ सूत्रार्थ—आनयन १ प्रेष्यप्रयोग २ शब्दानुपात ३ रूपानुपात ४ तथा पुद्गलक्षेप; ५ ये पांच देशव्रतके अतीचार हैं २६ ॥
भाष्यम्-द्रव्यस्यानयनं प्रेष्यप्रयोगः शब्दानुपातः रूपानुपातः पुद्गलक्षेप इत्येते पञ्च देशव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥
विशेषव्याख्या—किसी आते जाते हुए मनुष्यके द्वारा अभिलषित द्रव्य नियत देशकी सीमासे बाहरके देशसे मँगवा लेना यह आनयनातिचार है । १ भृत्य (नौकर) आदिके द्वारा सीमासे बाहर अपने न जानेके देशसे कार्य निकाल लेना, यह प्रेष्यप्रयोग है २ तथा नियत देशसे बाहर स्वयं न जाकर शब्दके द्वारा कार्य निकाल लेना, यह शब्दानुपात अतिचार है .३ तथा ऐसे ही परिमाणसे बाह्य देशमें अपना रूप (फोटो-तसबीरआदि )दिखाके कार्य चला लेना, यह रूपानुपात है ४ और इसी प्रकार परिमाणसे बाह्य देशमें पुद्गल अर्थात् ढेला पाषाणआदि फेंककर कार्यका निर्वाह करलेना, यह पुद्गलक्षेपनामा पञ्चम देशव्रतका अतीचार है ॥ २६॥ कन्दर्पकौकुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ॥२७॥
सूत्रार्थ-कन्दर्प १ कौकुच्य २ मौखर्य ३ असमीक्ष्याधिकरण ४ और उपभोगाधिकत्व ५ ये पांच अनर्थदण्डविरतिव्रतके अतीचार हैं ॥ २७ ॥
भाष्यम्-कन्दर्पः कौकुच्यं मौखर्यमसमीक्ष्याधिकरणमुपभोगाधिकत्वमित्येते पञ्चानर्थदण्डविरतिव्रतस्यातिचारा भवन्ति । तत्र कन्दर्पो नाम रागसंयुक्तोऽसभ्यो वाक्प्रयोगो हास्यं च ॥ कौकुच्यं नाम एतदेवोभयं दुष्टकायप्रचारसंयुक्तम् ॥ मौखर्यमसंबद्धबहुप्रलापित्वम् ॥ असमीक्ष्याधिकरणं लोकप्रतीतम् ॥ उपभोगाधिकत्वं चेति ॥
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