Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutram
Author(s): Thakurprasad Sharma
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 186
________________ १६० रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् उनके गुणोंका ज्ञान होनेपर उनमें अधिक श्रद्धा, इत्यादि संवेग है । तथा शरीरसे, भोगोसे, संसारसे ग्लानि होनेपर शान्त पुरुषकी बाह्य तथा आभ्यन्तरकी जो उपाधियां हैं उनमें अनासक्ति, अर्थात् संसार से शरीर से भोगादिसे सर्वथा शान्त होकर आभ्यन्तर क्रोधादिक तथा विषयोंमें जो अप्रीति है वही वैराग्य है ॥ ७ ॥ I अत्राह । उक्तं भवता हिंसादिभ्यो विरतिर्ब्रतमिति तत्र का हिंसा नामेति । अत्रोच्यते । अब यहांपर कहते हैं—कि आपने (श्रीआचार्यने ) यह कहा है कि हिंसा आदि पांच महापापोंसे जो निवृत्ति है वही व्रत है (अ. ७ सू. १); सो उन पांच पापोंमेंसे हिंसा क्या वस्तु है ? इसके उत्तर में यह अग्रिम सूत्र कहते हैं: - प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा ॥ ८ ॥ सूत्रार्थ — प्रमत्तयोगसे जो प्राणोंका शरीरसे पृथक्करण है उसको हिंसा कहते हैं ||८|| भाष्यम् – प्रमत्तो यः कायवमनोयोगैः प्राणव्यपरोपणं करोति सा हिंसा । हिंसा मारणं प्राणातिपातः प्राणवधः देहान्तरसंक्रामणं प्राणव्यपरोपणमित्यनर्थान्तरम् ॥ विशेषव्याख्या - प्रमत्त ( कषायसहित ) होकर काय, वाक् तथा मनोयोगों से जो प्राणोंका व्यपरोपण अर्थात् प्राणोंका वध करना है; वही हिंसा है । हिंसा, मारण, प्राणवध, प्राणातिपात, एक देह से दूसरे देहमें जीवका संक्रामण और प्राणोंका व्यपरोपण, ये सब समानार्थक शब्द हैं ॥ ८ ॥ अत्राह । अथानृतं किमिति । अत्रोच्यते अब कहते हैं कि अनृत क्या है ? इसका उत्तर कहते हैं असदभिधानमनृतम् ॥ ९ ॥ सूत्रार्थ -असत् अर्थात् मिथ्या जो कथन है उसको अनृत कहते हैं ॥ ९ ॥ भाष्यम् - असदिति सद्भावप्रतिषेधोऽर्थान्तरं गर्दा च ॥ तत्र सद्भावप्रतिषेधो नाम सद्भूतनवोऽभूतोद्भावनं च । तद्यथा - नास्त्यात्मा नास्ति परलोक इत्यादि भूतनिह्नवः । श्यामाकतण्डुलमात्रोऽयमात्मा अङ्गुष्ठपर्वमात्रोऽयमात्मा आदित्यवर्णो निःक्रिय इत्येवमाद्यमभूतोद्भावनम् || अर्थान्तरं यो गां ब्रवीत्यश्वमश्वं च गौरिति ॥ गर्हेति हिंसापारुष्यपैशुन्या. दियुक्तं वचः सत्यमपि गर्हितमनृतमेव भवतीति ॥ विशेषव्याख्या -असत् पदसे यहांपर सद्भावका निषेध, अर्थान्तर, (जैसा यथार्थ में है उससे अन्य अर्थ ) तथा गही निन्दाका ग्रहण हैं, उनमें सद्भावका निषेध नाम सद्भूत अर्थका अपह्नव ( छिपाना ) और असत् का उद्भावन ( प्रकटीकरण) । जैसे- 'आत्मा नहीं है, परलोक नहीं है, इत्यादि सद्भूत पदार्थका अपह्नव अर्थात् निषेध है । और श्यामा (समा वा सेवई वा अतिसूक्ष्म चावलविशेष ) तण्डुलमात्र यह जीवात्मा है, वा अङ्गुष्ठके पर्वमात्र यह आत्मा है, आदित्यवर्ण है, निष्क्रिय है इत्यादि असद्भुत वस्तुका 1 * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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