Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 269
________________ १६ तो पत्थो वियसि मुह-कमलु किं राहावेहु ण दिठु पई रक्खंतु महा-रह अट्ठ-रह रक्खंतु देव दाणव गह- वि रक्खंतु गरुड-गंधव्त्र - गण रक्खंतु रुद्द रकखंतु वसु रकख सहसक्खु तियकख - समु रक्खउ वइसाणरु वइसवणु परिरक्ख करेहि मारे कल्ले मई तो सयल - भुवण - जाणिय-गुण हो पडिवणें तर्हि संतोस भरे सिव - कंदणु सुक्कासणि-वडणु चिचयई कवंधई गयणयले अइ-बिरुवई रुव विहंगमहं चिताविय सुरवर सयल मणे उद्धसिउ धजउ जाउ दिहि नारायण-पवणालंखियउ Jain Education International [१४] णिव्वणहि केत्ति कुरुव-बलु बंदि-गह- गो-हे तुलिउ मई लइरह (?) रक्खंतु समत्त रह रक्खंतु दिवायर वारह-वि रक्खंतु महा-रिसि सत्त जण रख रक्खेव सचि जसु रक्खड कॉल - कालु कथंतु जमु रक्खउ रवि राहु-वि पवणु घगु घत्ता सहुं तइलोके तुहु-मि हरि | समरंगणे तो-वि अरि ॥ रिट्टणेमिचरिउ [१५] परितुट्ठ जणद्दणु अज्जुणहो उपाय जाय - कउरवहं घरे मयरहरखोहु महिहर-चलणु ओवुट्ठई रुहरई वरणियले पुच्छई जलियाई तुरंगमहं को जाणइ होसइ काई रणे पज्जलउ महारउ कोव - सिहि वरवइरिघण-संधुक्कियउ For Private & Personal Use Only ८ ९ घत्ता हरि - जुए हरि - चिंधे सई भुत्र-वल-हीणु हरि-वलु करे गंडीउ जहिं । जाइ जयद्दहु संदु कहिं ॥ * इय रिट्ठणेभिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव- कए सत्तावण्णमो इमो सग्गो । ४ www.jainelibrary.org

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