Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 323
________________ ७० रिट्ठणेमिचरिउ. [९] (दुवई) पंचहिं तिहिं धाइउ एक्कु जणु ताम णिसायरु कुविय-मणु । धाइउ णिय-रहवरे चडिउ अज्जुण-जेट्ठह अभिडिउ । भिडिय भडुब्भड भीमालंवुस मत्त महागय णाई णिरंकुस विष्णि-वि वावरंति विण्णाणेहिं रुपिय-पुंख-सिलासिय-वाणेहि णवहिं विओयरेण धारायरु तेण-वि पंचहि तव-सुय-भायरु एम परोप्परु पिहिउ पिसक्केहिं दूसह-दिणयर-कर-लल्लक्केहि आरिससिगि समरे संतावइ पंडु-पुत्तु केत्तहे-वि ण पावइ जुज्झिउ ताम जाम मुच्छाविउ कुरुव-वलहो रोमंचु चडाचिउ णिसियरेण पंडव-परिपालहं हयई चयारि सयई पायालहं चेयण-भाउ लहेवि विओयरु उठिउ णर-णरवइ-एक्कोयरु घत्ता उम्भड-भिडि-भयंकर आयंविर-लोयणु कुद्धउ । दिठु भीमु कुरु-लोएणणं सुएवि कयंतु विउद्धउ ॥ १० [१०] (दुवई) कोवारुण-किरणावरिउ पहरण-वित्रालंकरिउ । सर-घउ-तेय-भयंकरउ उइउ विओयर-दिणयरउ १ तो रयणीयरेण आसोइउ वलु मारुइ कहिं जाहि अ-घाइट। अज्जु मित्त लइ लइ उरे दुक्कहि मइ जिते जीवंतु ण चुक्कहि तो वरि णासु णासु मिल भायह अंगु ण सक्कहि ओड्डेवि धायहं ४ जइ भुक्खिएण कहि वि मई भुजहि तो धुउ एक्कु-वि कवलु ण पुज्जहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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