Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 321
________________ ६८ रिटणेमिचरित पडिवउ धाइउ वाण-सहासेहि लइ लइ लइउ लइउ तव-णंदण हाहाकारु समुठिउ पासेहि पंडव- लोउ परिट्ठिउ दुम्मणु ८ घत्ता ताम विओयर-जेठेण आसत्थामहो वप्पेण सोवण्ण सत्ति रणे घत्तिय । भत्थे एंति विहत्तिय ॥ (दुवई) जं तव-तणउ णिरत्थु किउ असरु सरासणु लेवि थिउ । पडिभत्थु विसज्जियां दोणहो चाउ विहंजियउ॥ १ मुक्कइ एम विहि-मि वंभत्थई सुका-पयाइव गयइ कियस्थइ बाणासणइ विहि-मि रणे छिण्णई विहि-मि सरीरावरणई भिण्णई धाइय वे-वि गयागणि-करयल उक्खय-खंभ णाइ वर मयगल ४ विहि-मि परोप्परु कह-व ण मारिउ तो सहएवें पहु ओसारिउ णियय-महारहेण णिवाहिउ संदणु दुम्मुहेश तो वाहित वलु वलु राउ वृत्त कहिं गम्मई सुर पेक्वंतु परोप्परु हम्मइ एम भणेवि सट्टि सर पेसिय महि-सुएण दसहि जीसेसिय ८ अवरे धउ अवरे धणु घट्टिउ अवरे सारहि-सिरु णिग्घट्टिउ पत्ता अवरेहिं चउहिं तुरंगम अवरेण महारहु खंडिउ । अच्छउ पडिपहरेवउ जहिं रणु सो देसु वि छंडिउ ॥ १० (दुवई) रह खत्तियए विखवत्तिएण चडिउ णिरामंत्तहो तणठं । सो सहएवं णिविठ वइवस-पट्टणु पट्ठविउ ॥ १ दुम्मुहु झंप देवि गउ णिय-वलु ण किउ जेण किउ तेण वि कलयल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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