Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 319
________________ रिटणेमिचरिउ तो तिहिं भल्लेहि सव्वायामें विद्ध विरुद्धे आसत्थामें तेहत्तरिहि णिहउ महुसूयणु एक्के कणय-महाकइ-केयणु चरहिं तुरंगम कह-वि ण घाइय तेण-वि तहो छम्मग्गण लाइय ४ छव्विससेणहो बारह कण्णहो भूरीसवहो तिण्णि छ विगण्णहो सम्ब-पत्थ-पत्थिव-पडिमल्लहो सउ अट्ठोत्तरु लाइय सल्लहो भूरीसवेण णिहउ तिहि वाणेहि कण्णे वारह परिसंखाणेहि पंचहिं पंचाहिव-दायाएं तेहत्तरिहि जयदह-राएं दसहि किवेण णवहि मदेसे सठिहिं गुरु-सुएण सविसेसे घत्ता वीसह विलम-खुरुप्पेहि आउंखिउ देवइ-णंदणु । मलय-महागिरि-मत्थए णं कमण-फणिदे चंदणु ॥ १ दुवई वणयर-वाह-णिवद्ध-कमउ दस-गुण-वद्धिय-विक्कमउ । आयामिरा- जूहाहिवइ वियरइ णरहो णराहिवइ ।। दसहि कण्णु तिहि कण्णहो गंदणु तिहि भूरीसउ कंचण-संदणु किउ सर-सयहो चउत्थे भाएं सिंधउ सएण पडु दायाएं। गुरु-सुरण ओसरिउ जगहणु भूरीसवेण पुरंदर णंदणु सयल-वि ते गंडोव-विहत्थे मएण सएं विणिवारिय पत्थे धाइउ सल्लु हुवासण-वीयए धय-धूवए कंचणसय-मीय ए सिंघउ सूयरेण सोवण्णे हत्थे कक्खकिय-चिंधए कण्णे बसहु किवेण मोरु विससेणे' हरिणंगूल हो णिग्गुण-थाणे घत्ता हरि चामोयर-गारुडेण णरु वाणरेण सोवण्णेण । एक रहेण वियंभइ सर-णियरे अगाणेय-गणेण ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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