Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
________________
तिमि संधि
एक्क - महारहु आइरिउ
तो-वि ण तीरइ घरेविं रणे
दुसह दो जाउ तर्हि अवसरे विवइ वलइ घाइ रहु रुंभइ कक्कय पंचवीस रणे धाइय सोमयसिंजय-मच्छ गरिंदहं एम करेवि संगामु भयंकरु वूह-वारे थिउ स वलु स वाहणु ताम समुद्दु जेम गज्जतउ
अज्जुण. धणु-गुण-सण सुव्वइ
खणे खणे संखु जणद्दणु मंछुडु भाइ समत्तु
(१५)
दुवई
Jain Education International
णरवर-सएहिं समोत्यरिउ । इरिहि जिह हरिणेंदु वणे ||
णं रवि जेट्टहो केरए वासरे जो दुक्कइ सो सरेहिं णिसुंभइ अवर णराहिव बहु विणिवाइय सउ मारियउ सरह गईं दह कलस-केउ गउ निय-थानंतरु जाउ णिरुज्जमु पंडव - साहणु सुबइ पंचयण्णु वज्जत उ णिज्झुणि देवयच ण विउव्वद
घत्ता
सई भुएहिं लेवि आऊरइ ।
-दणु हियर विसूरइ ||
७४
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभूएव कए तिसहिमो संधि समनो ॥
For Private & Personal Use Only
४
११
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 325 326 327 328