Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
७३
रितुणेमिचरिउ
घत्ता
पुणु धरहिं अप्फालेवि मेलिउ णिसियरु भयगारउ । कुरवेहि दिठु असेसेहिं णं णहहो पडिउ अंगारउ ।।
९
(१४)
दुवई
दिण्णई तूरई पंडु-वले सुर परिओसिय गयणयले । थिउ कुरु-साहणु भग्ग-मणु तुहिण-दछु णं कमल-वणु।। १ तो संताविय-रिउ-णिउरुवहो धाइउ कलस-केउ हइडिंकहो एंतु पडिच्छिउ गुरु जुज्जहाणे विद्धु थणंतरे एक्के वाणे पडिवा पंचवीस सर-पेसिय किवि-कतेण णवेहिं णीसेसिय पङिबउ वजसारु सुमसारिउ पंचेहिं देहावरणु वियारिउ पंचासेहिं सिणि-सुरण स.तोणे वाण-सएण समाहउ दोणे जाउ णिरुज्जमु रणु परिसेसिउ ताम जुहिट्ठिलेण वलु पेसिउ ८ धावहो जाम ण खयहो पबच्चइ गुरु-दंत तरे बट्टइ सच्चइ धाइय सोमय-सिंजय राणा पंडव-कइकय-मच्छ-पहाणा
धत्ता
एहए अवसरे पडिवण्णए जिह णइ-णिवह समुदेण
रणभर-धुरे जेहिं समिच्छय । ते दोणे एंत पडिच्छिय ॥
११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 324 325 326 327 328