Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 322
________________ तेसट्ठियो संधि ताम विकण्णु समच्छरु घाइउ उले अंतरे वाहिर संदणु - मही- सुयहो परक्कमु वुझेवि तहि अवसरे रण - रामासन्तहो रहु विद्धसिउछिष्णु सरासणु वग्धदंतु वग्धाजिण - संदणु धाइउ तो सच्चइहे समच्छरु केम व लद्धावसरेण उरे कपरि खुरुप्पेण वदते विणिवाइयए मगहाहवेण मउक्कडेहि तो सच्चइ - णाराय - वियारिउ तहि अवसरे ओवाहिय रहवरु भाइ धट्ठके वीरहणहो वीराहिवेण सरासणु छिज्जइ गाउ वीराहिउ वइत्रस - पट्टणु धाइ दोमइ - सुयहं विरुद्धउ पंच-वि पंचहि पंचहि कंडेहि तेहि मितिहि तिहि विद्धु थणंतरे .. रहू केण - विधउ केण वि जिह पर कलत्तु (१) वलनंतर Jain Education International सरु सह एव-महद्धए लाइउ जाउ महंतु विहि-मि कडवंदणु भग्गु विकण्णु ण सक्कउ जुज्झेवि खेमपुति तिहि विहसंतहो पाडिउ सीसु णाई थेरास धणु- कश्यलु मगहाहिब-णंदणु णं झस - रासि समुह सणिच्छरु घत्ता सो वग्घदंतु सिणि- पुत्तेण । विझवि रेवा-सोतेण ॥ [ ८ ] ( दुबई ) सिणि-णंदणे पोमाइयए । परिवेढाविय गय - धडेहि ॥ गय- साह असेसु ओसारिउ संधिय-सरु आयडूढिय - धणुधरु णाई महागहु गहवइ - गहणहो वेवेण उरे सत्तिए भिज्जइ ताम दोणु परवल - दलवट्टणु णं इंदियहं महारिस कुद्धउ वसह णाई हय हाणिय- दंडेहि सोमयत्तु थिउ कुरु-गुरु-अंतरे For Private & Personal Use Only १० घत्ता वाणासणु केण - वि ताडिन । स-मउडु सिरु केण वि पाडिउ ।। ९ ४ ८ ६९ www.jainelibrary.org

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