Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 312
________________ बासहिमो संधि जं वेहाइद्धउ दिदछु कुरु तं लग्गु चवेवए दोणु गुरु अज्जुणु जुवाणु जगे पायडउ हउं कुरुव राय पुणु थेरडउ ण पहुच्चहि अप्पुणु करहि रणु लइ अस्थई लइ देहावरणु इंदहो अंगिरसहो सुर-गुरुहो सिहि-वइसहो मज्झु तुन्झु कुनहो अइ हत्योहथिए अप्पियउ णउ वज्ज सुरेहि-मि कप्पियउ तो तेण होइ दूणाहिवहोणं अयसु चडाविउ पत्थिवहो १० करयले धणु स-सरु परिदठविउ वकत्तणु विउणउं गाई किउ घत्ता तुहुं ण पहुच्चहि अज्जुणहो धग्धर-गुण-धणु-गुण-रवेण भमरावहि-भुय-सर-दंडेहि । णं वुत्तु काय-कोयंडेहिं ॥ १४. [८] (मात्रा) स-सा सरासणु कवउ(?) तं लेप्पिणु दुज्जोहणु आथउ (?) पभणइ भिच्च थक्कहो म भज्जहो । एक्कहो जि रिउ-संदणहो पुट्ठि देत रणे कि ण लज्ज हो ।। (मंजरी) खत्तियाहं तं कुल-धणु जं पहरिज्जइ । जसु जएण सुर-बहु मरणेण लइज्जइ । सामिय-सम्माण-दाण-रिणहो एह अवसरु सीसई विक्किणहो ओसरेवि लहेसहु कवण गइ को महु जीवंतहो परिहवइ पेक्खंतु सुरासुर गयण--वहे लायमि सर-धोणि पत्थ-रहे पाडमि धय-ट्टि पवंगमहो सहुं गरुडे चिधु तिविकमहो भंजमि गंडीउ धगंजयहो सउरिहे सारंगु रणुज्जयहो दोमइहे करमि बिहव तणउं भाणुवइहे घरे बद्धावणउं १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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