Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 316
________________ जासठिमो संधि एत्तडिय वार चितंतु थिउ कि वंभहो रुदहो दिणयरहो किं अवरे केण-वि दिण्णु वरु किं दइवे लोह-पिडु घडिउ मई एवहि णवर वियप्पियउ महिलए जे होवि आढविउ रणु कहो वलेण एण संगामु किउ किं धणयहो जमहो पुरंदरहो किं तुहुँ पसण्णु सारंग-धरु १० कि वज्ज-खंडु रहवरे चडिउ जिह दोणे कबउ समष्पियन कहि मिगु कहिं विसइ सोह-भवणु घत्ता तउ पेक्खंतहो महुमहण कुरु देहावरणु जे दामि । तरु-कोडरेहिं भुवंग जिह भुय दंडेहिं सरई पइसारमि ।। १४ [१३] (मात्रा) हरि णवेप्पणु पंडु-पुत्तेण वाणासणि पविय हय तुरंग जोत्तारु बिद्धउ । रह खंडिउ छिण्णु धणु थरहरंतु पाडिउ मह द्वउ ।। (मंजरो) खुडिउ छत्तु महिमंडले-वि थिउ अ-सहाइउ । दंड-हीणु जिह कुरुवइ तिह पच्छाइउ ।। दुज्जोहण-मण-संताव-कर दसमिहि अंगुलियहिं गमिय सर णं केवइ-सूइहि भमर गय गं घर-जुवइहि सहुं वीर सय ण रवियर अवर-दिसा-मुहेहि वण-दर-फुलिंग णं गिरि-मुहेहि विसहर भवणेहिं अप्पणेहि तिह सर पइट्ठ णह-दप्पणेहि णं उद्ध-वाहु रिसि तउ करइ पच्छाउहुं पउ पउ ओसरइ १० कहई असेसहो सुरशणहो हर अणहियारि तब-गंदणहो विणु कज्जे कह विण मारियउ सूइउ णहेहि पइसारियउ घत्ता के एकल्लउ सर-गियरु अण्णु-शि जो परु संतावइ । छिद-पडिच्छउ विद्वणउ णह-सम पीइ विहावइ ॥ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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