Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 313
________________ ६० रिट्ठणेमिचरिउ गंधारिहे देमि अणंत दिहि जय-लच्छि समप्पमि कउरवहं कोतिहे वडूढारमि सोय-सिहि दावमि जम-पट्टणु पंडवहं घत्ता एम भणेवि णराहिवइ धणु-लोल-ललाविय-जीहहं । धाइउ णर-णारायणहूं __णं एक्कु हत्थि विहिं सोहहं ॥ १४ [९] (मात्रा) एत्थु अवसरे रिठ्ठ-णिठ्ठवणु कंसासुर-पलय-करु वासुएउ दक्खवइ पत्थहो । कुरु-णाहु समावडिउ एक्कु मूलु सव्वहो अणत्थहो । (मंजरी) 'एण-वि विसु दिण्णु भीमहो जउहरु वालियउं । महिय-अद्ध जूय-च्छलेण उहालियउं ॥ एहु अंकुरु भारह-तरुवरहो एहु कारणु दाइय-मच्छरहो एहु दणु दोमइ केस-ग्गहहो वणवासहो अरणिहे गोग्गहहो तं एण जे संधि-कज्जु ण किउ एण जे समरंगणु आढविउ सरि-सुय-भयवनहं एहु जे खउ माराविउ णंदणु एण तउ एहु दुण्णय-दुज्जस-कुसुम-सहो( ) एहु फलु अवराह-महा-दुमहो १० कलिरुक्खहो मूल-जालु खणहो को काल-खेउ लहु आहणहो भडु भणइ भडारा महुमहण एहु दुम्मइ समर-भरुवण चुक्कइ एत्तडेण अ-मारियउ जं भीमें थुत्थुक्कारियउ घत्ता पूरिउ देवयत्तु गरेण दिज्जइ णिय-संखु अणते । गं तिहुवणु उवसघरेवि विहिं वयणेहिं हसिउ कयंते ॥ १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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