Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 306
________________ एकसठिमो संधि [१४] असि-फर-करु धट्ठज्जुणु धाइउ दोणहो रहवरे चडिउ महाइड देइ ण देइ घाउ सिरि जावहि दसहि सरेहि छिण्णु असि तावहि चामीयर-चामरु सय-चंदउ खंडिउ सर-सएण वसुणंदउ चक-रकख विहिवे-वि णिवारिय सहिहि कह-वि तुरंग ण मारिय ४ अबरें किर बच्छ-स्थले भिदइ सच्चइ चाउ ताम तहो छिदइ विहि-मि परोप्परु वाणे हे छाइउ विहि-मि परोप्परु कह-व ण घाइउ घता विहि-मि परोप्परु छिण्णई छत्तई चिधई विहि-मि वसुंधर पत्तई । सुरवर रण-रस-रहसुद्धआ रणु पेक्तखंह कोडीभूआ ॥ ८ [१५] तो सिणि-सुएण सरासणु ताडिउ पहिलउं वीयउं तइयउं पाडिउ एम चउत्थर्ड पंचमु छ? सउ एक्कोत्तरु जाम पणट्टर गुरु चितवइ चित्तु वद्वार अइसंधिउ विण्णाणु महारउं जं ण णरहो रामहो गंगेयहो धणु-विण्णाणु सव्वु तं एयहो ४ मणे चितेवि मुक्कई दिव्वत्थई सच्चइ सव्वई करइ णिरत्थई दोणे सरु अग्गेउ विसज्जिउ वारुणेण सिणि-सुएण परज्जिउ सोमय-सिंजएहि एत्यंतरे सव्वेहि दिण्ण महारह अंत में उठिउ रण-रउ कहि-मि ण माइउ णं अ-कुलीणउं उप्परि धाइउ ८ घत्ता वियलिय-खग्गई मुक्कल-के सइं कुसुमइ पंडव-भडे हे पयंडे हे भग्गइ कउबर-वलई असेसई । घित्तई सुरेहिं सई भुव-दंडेहिं ॥ ९ इय रिट्टगेमि बारेए धवलइयासिय -सयंभुऐव-कए एक्कसठिमो सग्गो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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