Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 307
________________ वासहिमो संधि खंडव-डामरु चाव-करु ___णारायण-किय-साहेजउ । कणय-कइद्धउ दिव्व-रहु पर-वलु पइसरइ धणंजउ ॥१॥ [१] (मात्रा) रहहो दूसहु चक्क-विक्कार गंडीवहो विसमु रउ अइ-रउरउ सरु देवयत्तहो । तिहिं वहिरिउ कुरुव-वलु समुहु को-वि णउ णरहो जंतहो ।। (मंजरी) सर भमंति कोसावहि चउहु-मि पासेहिं । पहरणाई परिचत्तई सुहड-सहासेहिं ।। परिसक्कइ रहवर जेम जेम णासंति धणुद्धर तेम तेम फुटुंति दिसो-दिसि रिउ-वलाई मंदरहो जेम जलणिहि-जलाई तो णरहो वलिय विदाणुविद णं सीहहो मत्त महागइंद णं चिरु जमलज्जुण महुमहासु णं चंदाइच्च महा-गहासु कंचण-रह कंचण-चाव-दंड कलहोय-विंदु-चित्तलिय-कंड धवलायवत्त धूवंत-चिंध दुव्वार-वइरि-वाहिणि-णिसिद्ध १०. चउसट्ठि-पिसक्केहि पिहिउ पत्थु सत्तरिहिं सउरि सारंग-हत्थु सरसउ सारिच्छ-भुवंगमाहं लाइउ अट्ठदहेहि तुरंगमाहं वाणेहिं णवहिणवहिणरेण वे-वारउ छिण्णइं चावई । दुट्ठ-कलत्तइ जिह थियई णिग्गुणई अणुज्जुअ-भोवई ॥१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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