Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 308
________________ बासहिमो संधि २] (मात्रा) हय तुरंगम णिहय जुत्तार चिधाई दोहाइयई पाडियाई सेयायवत्तई। कंचण-चावइ आयइ चक्क-रक्ख-चक्कई विहत्तई ॥५ (मंजरी) चामराई धवलाइ मणोहर-दंडइ । साडियाइरिउ-जोहरं णं जप्त-खंडइ ।। उन्भड-भू-भंगुर-भिडिउ भीसु अवरेण खुरुप्पे खुडिउ सीसु रण-रहस-वसुद्धय-अवय-खंधु दस-दिसइ गपि विडिउ कवंधु विणिवाइए विदे महाणुभावे दारुण-दवग्गि-दुसह-पयावे अणुविदु पधाइउ तेण-काले णारायणु लउडिए हउ णिडाले तो पत्थे सटिहि मग्गणेहि आसोविसाहिविसमाणणेहि सिरु पाडिउ पाडिय वाहु-दंड । चरणोरु वे-वि किय खंड-खड १० किंकर-साहणु पहरंतु पत्तु णिविसद्धहो अद्धे सो समत्तु विदाणुविद विविय जाम मज्झण्हहो गउ दिवसयरु ताम घत्ता भणइ जणहणु पत्थ पई पायथे वइरि धरेवा । तिसिय तुरंगम समहो गय सारहि-वि विसल्ल करेवा ॥ १४ [३] (मात्रा) भणइ फग्गुणु माहवासण्णु रण-रुक्खहो उड्डवमि करयरंत करव-विहंगम । सारहि-वि मेल्लंतु इह जलु पियंतु इच्छए तुरंगम ।। _ (मंजरी) भणइ कण्हु तं पाणिउ कहिं पाविजइ । एत्थु णस्थि सरि सरवरु केत्तहे पिज्जइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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