Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 309
________________ रिहणेमिचरिउ णारायणु पणिउ अज्जुणेण गंगेयहो जलु दक्खविउ जेहिं सहसत्ति विसज्जिउ वाण-जालु कडूढिय विचित्त पायाल-गंग हल्लिर-महल्ल-कल्लोल-लोल हर-ससहर-कर-संचलिय-तोय तुहिणइरि-तहिण कारण-विसुद्ध किउ सरि जे महासरु पंडवेण सर दिण्ण दिव्व महु पज्जुणेण कड्ढमि भाईरहि तलहो तेहि महि दारिय जोउ महो-खयालु तारोह-तार-तरलिय-तरंग परिहच्छ-मच्छ-कच्छव-विओल हरि-चरण-इ-पह-जाय-धोय १० णइ णिग्गय पावण वण-समिद्ध पच्छाइउ सो सर-मंडवेण घत्ता अच्छउ दारुणु ताम रणु सुरवरेहि णहंगणे वुच्चइ । जं जलु कडूढिउ अज्जुणेण लइ एण जि किण्ण पहुच्चइ ॥ १४ [४] (मात्रा) मुक्क संदण डीण जोत्तार पइसारिय तुरय जले किय विसल्ल परिमट्ठ पहाविय । तहिं अवसरे पडिभडेहि सउरि पत्थ पायत्थ जाणिय । (मंजरी) दिण्ण तूर किय-कलयल उखय पहरण । उद्ध-सोंड णं सीहहो धाइय मत्त वारण ॥ मरु विधहु वेढहु धरहु लेहु णिय-सामिय-कज्जावसरु एहु गोरायणु समरे अ-जुज्झमाणु ण समप्पइ पवर तुरंग-अण्हाणु एक्कल्लउ पत्थु धरत्थु जाव आढवहो अक्खत्वे मिलेवि ताव किं जोहिउ पुणु रह-पत्तु पत्थु पडिवारउ तुम्हहं वले अणत्थु अण्णोण्णुच्छाहिय कुरुव दुकक मयरहर व णिय-मज्जाय-चुक्क वंगंग-कलिंग-रिसिक्क-राय दूसासणु दूसासणहो भाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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