Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 304
________________ एकसठिमो संधि [१०] तं तेहउ णिएवि आओहणु एक्क-महारहेण दुज्जोहणु दिव्व-सरीरावरणावरियहो पासु पढुक्कर दोणायरियहो ताय ताय महु केरए साहणे किंकर-दुरय-तुरय-रह-वाहणे वे-वि पइ8 पत्थ-गरुडासण लग्ग णाई वणे पवण-हुवासण जइ सावेण सरेण-वि मारहि तो किं वइरि चूहे पइसारहि गरु ण भग्गु ण जयबहु रक्खिउ होहि णिरुत्तउ पंडव-पक्खिउ खत्तिउ मुएवि भिच्चु किं भुज्जइ डोड्ड-किराडहं एउ ण-वि जुज्जइ किवि-कतेण वुत्तु तो राणउ तुहुँ महु आसत्थाम-समाणउ ८ घत्ता] भणु भणु कुरुव-राय जं वुच्चइ को णारायण-णरहं पहुच्चइ । केत्तिउ दिवे दिवे कलहु पउंजहि दुण्णय-दुमहो फलइ अगुहूंजहि ॥ ९ [११] तो गंधारि-पुत्तु आहासइ अज-वि ताय कज्जु ण विणासइ अज्जि-वि सुहडहं सिरई ण छिदइ x x अज्ज-वि अट्ठ-महारह-पासेहि अन्ज-वि रक्खिउ सयण-सहासेहि ४ अज्ज-वि सुसइ ण कुरुव-महादहु अज्ज-वि सव्वहं मञ्झे जयबहु पई जे भडारा तेत्तहि ठवियउ कंदंतु-वि ण घरहो पट्ठवियउ भणइ दोणु वूहई दुब्भेयइ अंतरे अंतरे वलइ अणेयई जहि रह गय-तुरंग-हय पत्थे संदणु केम जाइ ते पंथे हउं सु-महत्तरु जिह परिसक्कमि पवलु धणंजउ जिणेवि ण सक्कमि . घत्ता जाहि णराहिव अप्पणु जुज्झहि सुरवइ-सुयहो परक्कमु वुज्झहि । मई संगामु महंतु करेघउ अज्जु जुहिठिलु अवसु धरेबउ ॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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