Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 302
________________ ४९ एकसटिमो संधि [६] चेयण लहेवि ताम सेयासें जोइड णाई कयंत-सहासे वाम-करेण लयउ वाणासणु वारिउ खंडवे जेण हुवासणु जेण णिवालय-कवय णिवाइय काल-कंज सम-धाएं घाइय जेण णियत्तिउ गोगगहे गोहणु। छंडाविउ रण-महि दुज्जोहणुन जेण अणेय वार जालंधर छंडाविय धणुवरई धणुद्धर तं गंडीउ लएबि सहत्थे किउ वइसाह-वाणु रणे पत्थे सरवर-सहस एण रिउ रुद्धा जममुह-कुहरे चयारि-वि छद्धा पंच सयई किंकरहं समत्तइ रहिय पंच सयई महि पत्तई ४ । घत्ता सलहहं तणिय इत्ति जिह धावइ एककहो एक्कु-वि खंडु ण पावइ । जाय महावलु रणे सर-जालहो थिउ अवयच्छिउ जे मुहु कालहो ॥ ९ [७) तहिं अवमरे णरु वरिउ वरेण्णेहिं पारव-दरयाभीसव-सेण्णेहि भोट्ट-कोंठ-जावण-जउहेएहि जालंधर-णारायण-मेएहिं मउरल-केरल-कउहड-णामेहिं पच्छल-मेहल-गणेहि पगामेहि मालव-मद्दव-गण-गंधारेहि ललिय-तुरुक्क-तिउड-तोक्खारेहिं ४ वहुहिं रण-पुरवासिय-राएहि णाहल-मेच्छ-पुलिंद-चिलाएहि ववर-लंपड-कक्कस-कीरेहि गुज्जर-गउड-लाड-आहीरेहि ताइय-तामलित्त-बंगंगेहि दाहिणत्त-कंवोय-कलिंगेहि सुंड-पउंड कुणिंद कुणोरेहि कंसावरणावरिय-सरीरेहि घत्ता आएहि अवरेहि-मि सामतेहि वेढिउ अज्जुणु एककु अणंतेहि । सरु एक्केक्कु करइ बहु-वाणेहि सव्व धवावइ वाण-सहासेहि ॥९ रि-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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