Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 295
________________ रिटणेमिचरिउ एहु कलयलु केवलु वणे(१) अणत्थु पइसारिउ महुमहणेणं पत्थु ण णिवारिउ केहि म राणएहिं गुरु-पमुहेक्के क-पहाणएहिं तं सुणेवि सुआउहु भणइ एम दुजोहण महु देव वि अ-देव मणुसहुं अवज्झु वरुणहो वलेण को छिवइ जयबहु करयलेण ॥ ८ पत्ता वाणर-चिंधेण एउ धणंजउ जमलोकिएण कयंते । जइ संहरिउ कियंते !! [१६] हेला) ताम सुरिंद-गंदणो रुंद-संदणत्थो । कुरुहुँ जणदणेण पइमारिओ अणत्यो॥ चूरंतु असेसई साहणाई रह-तुरय-दुरय-वर-वाहणाई धय-छत्तई चिंधइ चामराई कर-धरणंगुलि-सिह-सेहराई पोवरणाहरणइ साहणाई णं महिहे किंतु तारायणाई ज दिठु धणंजय-रवि तवंतु सर-किरणेहिं कुर-तरु णिहंतु तं समुहोवाहिय-संदणेण हक्कारिउ वरुणहो गंदणेण हेवाइउ तल-तालुय-मएहि अवरेहिं समर-तण्हालुएहि णामेण सुआउहु हउँ पसिद्ध जसु पहरणु वारुण-तणउ सिद्ध ८ एम भणेप्पिणु णर-णारायण घत्ता छाइय सर जाले । जिह पाउस-काले ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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