Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 293
________________ ४० पुणु णर-णारायण वे-वि विद्ध रु हिउ पंचवीसहि सरेहिं म्हत्थे अत्थे पडिणिसिद्ध विहिं पंचहिं अज्जुण-संग एहिं थु गुरु सीसेण कि रूसेव जुत्त पइसंतु धर्णजउ पडिणिसिद्ध तिह परेण परिंदा संसएण पंडवेण एकत्रीसेहि सरेहिं वीसहि पत्थु थणंतराले वच्छत्थले णवहिं णरेण भोउ हरि भणइ धणंजर पडिणिसिद्धे जं एम पवोल्लिङ णर-मुरारि हक्कारिउ ताव सुदकखण एम भर्णतु अज्जुगो भिण्णेवि वेणि वूहइं णं पर- मुहे जमेण वि-रह विद्ध ( ? ) णं मंतु करतेहिं अक्खरेहि ८ पुणु नर-नारायण वे - विविद्ध णक्खत्तणेमि दस - सत्तएहिं Jain Education International घन्ता जाहि ताय णिय थामहो । उप्पर आसत्थामहो || [१३] (हेला) गड गुरू नियन्तो । तइययं वि पत्तो ॥ घन्ता स-सरु स - कढिय - धम्मउ | जिह कयंतु कियवम्मर || ताम पराइड पत्थहो पच्छए 12.2 J उच्चलइ. 7b-9a Bh. drops. रिट्ठणेमिचरिउ कियarमें दसहि सरेहि विद्धु पंचासेहिं जायव - बंसि एण धणु अवरु छिण्णु कड्ढेवि करेहिं ४ कह-कह - विण पाउि तेत्थु काले मुच्छाविड वेविड कुरुव-लोड पडिवार उपरि चिंधे चिंधे तं वचेवि गउ गंडीव - धारि कंबोज णराहिब - सक्खिएण For Private & Personal Use Only ११ ८ १० www.jainelibrary.org

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