Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सठिमो संधि
[१४]
(हेला) ताम समुत्तमोज्ज- जुहमण्ण चक्क-रक्खा ।
भोयाहिवहो धाइया वे-वि वद्ध-लक्खा ॥ सम-कंडिउ विहि मि धणुद्धरेहिं ते तेण-वि सत्तिहिं मग्गणेहिं तेहि-मि तहो वीसहिं मग्गणेहिं धणु विद्ध विद्ध पडिलग्गणेहि ते अवरु परासणु लेवि ताह छिण्णई धणुहरई धणुद्धराह ॥ ४ अवरई विहिं विणि सरासणाई लइयइ जम-भउहा-भीसणाई कियवम्मु णिवारेवि जंति जाम णर-रहवरु दूरीहूउ ताम पइसारु ण लदु णियत्त वे-वि पहरंति परिट्ठिय कहि-मि ते-वि तहिं अवसरे माण-महिद-थक्क दोहि-मिणरेण पेसिय पिसक्क ॥ ८ तोडियई सिरई पंकयइ जेम थिय सयल णराहिव हिरवलेव
घत्ता सामिय-अवमरे रण-रहसुद्धय-खंघेहिं । सीसई देप्पिणु णच्चिउ णाई कवंधेहिं ।।
१०
[१५]
(हेला) माण-महिंद-मद्दणे संदणो पयट्टो ।
गं हय-गय-णरिदहं भमइ मयइवट्टो ।। कइ-केयणु णाई कयंतु पत्तु गुंजइ हरि-संखु ण देवयत्तु गज्जइ गंडोउ महा-उदु णं महणावत्थहे गउ समुद्द गोंदलु कोलाहलु वहलु जाउ णं भिण्णु तिसूलें कुरुत्र-राउ अहो अहो सामंतहो जहि (?)ण भाहु थिय णिय-णियि-थाणतरेहि थाहु ॥४
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